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Sunday, December 18, 2011

आगामी कार्यक्रम

दिल्ली में निवास करने वाले पूज्य गुरुदेव के भक्तो के लिए एक बहुत बड़ी खुशी कि बात हम यहाँ बताने जा रहे हैं. गुरूजी कि कृपा अपने दिल्ली के भक्तों पर बरसने वाली है क्यूंकि अगले कुछ दिनों में यहाँ एक के बाद एक तीन कथाओं का आयोजन किया जा रहा है. नीचे पूज्य गुरुवार के आगामी कार्यक्रमों कि सूचि दी जा रही है:

परम श्रधेय आ० गो० श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज 

1.) 17 दिसम्बर 2011 से 23 दिसम्बर 2011 : भोपाल, मध्य प्रदेश  

2.) 25 दिसम्बर 2011 से 31 दिसम्बर 2011 : कोल्कता 

3.) 02 जनवरी 2012 से 08 जनवरी 2012 : रामलीला मैदान, पी.यु. ब्लाक, पीतमपुरा, दिल्ली 
(इस कथा का सीधा प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर)

4.) 10 जनवरी 2012 से 16 जनवरी 2012 : भवानी निकेतन स्कूल ग्राउंड, जयपुर 

5.) 26 जनवरी 2012 से 01 फरवरी 2012 : आदर्श नगर, दिल्ली 


परम श्रधेय आ० गो० श्री गौरव कृष्ण शास्त्री जी महाराज 

1.) 17 दिसम्बर 2011 से 23 दिसम्बर 2011 : कोल्कता 

2.) 25 दिसम्बर 2011 से 31 दिसम्बर 2011 : कमला नगर, दिल्ली 
(इस कथा का प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर)
दिनाक- 26  से 1 जनवरी तक 
समय- 3 से गुरु इच्छा  तक 

3.) 10 जनवरी 2012 से 16 जनवरी 2012 : पडरौना, उत्तर प्रदेश 


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कमला नगर में कथा की जानकारी 

कथा व्यास : परम पूज्य श्रधेय गौरव कृष्ण शास्त्री जी महाराज 
दिनांक : 25 दिसम्बर 2011 से 31 दिसम्बर 2011
समय : दोपहर २ बजे से सायं ६ बजे तक 
कथा स्थल : " श्री मधुबन वाटिका ", बिरला स्कूल ग्राउंड, कमला नगर, दिल्ली 

(इस कथा का प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर देखा जा सकता है)

दिनाक- 26  से 1 जनवरी तक 
समय- 3 से गुरु इच्छा  तक 

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"" विशेष जानकारी ""
पिछले कुछ दिनों में हमें आप सब से बहुत सारा प्यार मिला है. अनेक भक्तों ने अपने भाव हम तक पहुचाएं और उनका सहयोग सराहनीय है. आप सब भक्तों के विश्वास और आस्था को देखते हुए यह बात बतानी हमारे लिए अति-आवश्यक हो गयी थी. हम यह बताना चाहते हैं कि यह ब्लॉग हम भक्तों के मिलने का एक स्थान है. इस ब्लॉग के जरिये हम अनेक भक्तों के निकट आये है और भक्तों की भावनाओ से भी हम परिचित हुए. जैसा कि पहले भी कई बार बताया जा चुका है, आज फ़िर से हम यह बताना चाहते हैं कि इस ब्लॉग से पूज्य बड़े गुरुदेव या पूज्य छोटे गुरुदेव या उनके किसी भी कार्यकारी सदस्य का व्यक्तिगत रूप से कोई सम्बन्ध नहीं है. वैसे तो यह ब्लॉग गुरूजी के आशीर्वाद के बिना संभव नहीं है परन्तु यहाँ पर डाले गए लेख गुरु जी के भागवत से मिला ज्ञान और भक्तों के अपने विचार हैं. उनमे गुरूजी का साक्षात् रूप से कोई योगदान नहीं है. यह ब्लॉग गुरुदेव द्वारा नहीं अपितु गुरुदेव की कृपा से चल रहा है. हमने यह कोशिश की है कि समय समय पर आपको यह जानकारी देते रहे जिससे कोई भी भक्त यह उम्मीद न रखे कि वह सीधे गुरूजी के संपर्क में है. हम आपकी भावनाओ कि बहुत इज्ज़त करते हैं, इसलिए हम प्रयासरत हैं कि किसी भी प्रकार से आपकी भावनाओ को ठेस न पहुचे परन्तु फ़िर भी जाने-अनजाने में यदि हमारे किसी कर्म से ऐसा हुआ है तो उसके लिए हम सब हाथ जोड़ के आपसे क्षमा याचना करते हैं. जैसा कि गुरूजी ने स्वयं शरद पूर्णिमा पे कहा था कि उनका खाता तो सिर्फ बांके बिहारी जी के चरणों में है, हम सब उनके श्री चरणों में यह विनती करते हैं कि वो हमें इस काबिल बनाये कि हम भी राधा राणी के चरणों में अपने जीवन का खाता खोल सके. 

प्रसारण जानकारी 
पूज्य बड़े गुरुदेव श्रधेय आचार्य गोस्वामी श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज की कथा का भोपाल, मध्य प्रदेश से विशेष प्रसारण आप देख सकते हैं दोपहर ३ बजे से केवल अध्यात्म चैनल पर. 

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Wednesday, December 7, 2011

बांके बिहारी की मुरलिया

मोहन के लब पे देखो, क्या खुशनुमा है बंसी
बंसी पे लब फ़िदा है या लब पे फ़िदा है बंसी
मुर्दे को करदे जिन्दा और जिन्दे को करदे मुर्दा
ये खुद खुदा नहीं, पर शान-ऐ-खुदा है बंसी

भगवान श्री बांके बिहारी जी को बांसुरी अत्यंत प्रिय है. हम मुरली के बिना ठाकुर जी कि कल्पना भी नहीं कर सकते. यह कोई साधारण बंसी नहीं है, इस बंसी के तो इतना प्रभाव है कि इस मुरली की तान ने भगवान भोलेनाथ की भी समाधी भंग कर दी थी. सब गोपियाँ इस मुरली को सुन के बावरी हो जाती थी. इस का प्रभाव तो यहाँ तक बताया जा चुका है कि जब भगवान बांसुरी बजाते थे, तो समय भी मानो उनको सुनने के लिए ठहर जाता था. 

क्या आपने कभी यह सोचा है कि भगवन ने केवल बांसुरी को इतना बड़ा सौभाग्य क्यों दिया कि बांसुरी हमेशा उनके साथ रहती है और उनके अधरामृत का पान भी करती है. वाद्य यन्त्र तो और भी अनेक हैं पर प्रभु ने केवल बांसुरी को ही क्यों चुना. अनेक टीकाकारों ने इसके अनेक कारण बताये हैं पर जैसा पूज्य गुरुदेव से सुना है आप सब को बताने जा रहा हू. 

भगवान को बांसुरी इसलिए प्यारी है क्यूंकि इसमें ऐसे तीन गुण है जो अन्य किसी भी वाद्य यन्त्र में नहीं होते. और इन्ही तीन गुणों के प्रभाव से बांसुरी भगवान के अधरों पर विराजमान हो गयी. 

बांसुरी का पहला गुण है कि यह अपने आप नहीं बजती. अर्थार्थ जब इसे फूंक मार के बजाया जायेगा तभी यह बजेगी. तो आप प्रश्न कर सकते हैं कि ऐसे तो कोई भी वाद्य यन्त्र अपने आप नहीं बजता, सबको बजाना ही पड़ता है. पर यदि आप मुरली से ठोकर खाते हैं, तो यह आपका रास्ता नहीं रोकती, स्वयं एक ओर हो जाती है और आपको कभी हानि नहीं पहुंचाती. अब आप कभी ढोलक से टकरा के देखना. खुद तो बजेगी ही आपको भी बजा देगी. पर मुरली बड़ी शांत स्वाभाव की है. 

इसका दूसरा गुण है कि यह सदा मीठा बोलती है. कोई बालक जिसे बांसुरी बजानी नहीं आती है, यदि वेह भी इसको बजाता है तो इसका स्वर कर्कश नहीं लगता. हमेशा मधुर ही लगता है. और यदि किसी को बजानी आती हो तो व्यक्ति इसकी तान में ही खो जाते हैं. परन्तु अन्य यन्त्र केवल उसी व्यक्ति के हाथ में शोभा देते हैं जो उन्हें बजाना जानता हो. अन्यथा तो बहुत कर्कश ध्वनि उनमे से निकलती है. 

मुरली का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण गुण है उसकी सरलता और उसका भोलापन. आप देख सकते हैं कि मुरली में कभी कोई गांठ नहीं होती. यह ऊपर और नीचे से एक समान होती है और अंदर से खोखली भी होती है. ये जैसे ऊपर से दिखती है वैसी ही ये अंदर से भी है. 

बंधुओ, यदि बांसुरी के ये तीन गुण हम अपने अंदर भी जागृत कर लें, तो विश्वास रखिये कि भगवान आपको अपने अधरामृत से वंचित नहीं रख पाएंगे. वो आपको भी वही स्थान दे देंगे जो उन्होंने मुरली को दे रखा है. कहने का तात्पर्य यह है कि आप भी बिना कारण के मत बोलिए. जब बहुत आवश्यकता हो तभी बोलिए, व्यर्थ में इस जिह्वा का उपयोग न करें. और जब भी उपयोग करें दूसरों कि भलाई के लिए करें. हमेशा मधुर वाणी बोलिए. यदि कोई आपके साथ अपशब्द प्रयोग भी करता है तो आप उसे उसकी भाषा में जवाब देने के स्थान पर मधुर वचन बोलिए, तो सामने वाला व्यक्ति अपने आप लज्जित हो जायेगा और उसे अपनी भूल का एहसास भी हो जायेगा. पूज्य गुरुदेव कहा करते हैं:
दुनिया कभी किसी को मुहब्बत नहीं देती 
इनाम तो चाहती है पर कीमत नहीं देती
देने को तो दे सकता हूँ मै भी तुम्हे गाली
पर मेरी तहज़ीब मुझे इसकी इजाज़त नहीं देती
और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण गुण, कि आप भी अपने अंदर से हर प्रकार कि गांठ को मिटा दीजिए. इर्ष्या, घृणा, राग, द्वेष जैसे जो दुर्गुण है उन्हें अपने अंदर ने निकल दीजिए, सबके साथ एक समान व्यव्हार करिये और अपने अंदर भोलेपन को जागृत करिये. सहज रहने कि आदत डाल लीजिए और हर कदम पे, हर साँस पे प्रभु कि कृपा का अनुभव करिये और खुश रहिये. 

यदि ये सरे गुण आप अपना लेते हैं तो आप भी भगवान को मुरली के समान ही प्यारे लगोगे. आशा करता हूँ कि आपको इस जानकारी से कुछ लाभ अवश्य होगा और यह बातें आपको प्रभु के नज़दीक ले जाने में सहायक अवश्य होंगी. 

विशेष सूचना 
परम श्रधेय आ० श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी की कथा का गुना, मध्य प्रदेश से विशेष प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर देख सकते हैं. 
समय 
सुबह 10:40 से दोपहर 02:00 बजे तक 

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