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Sunday, December 23, 2012

Upcoming Programmes

श्रधेय आचार्य गोस्वामी श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज 

विश्व के इतिहास में पहली बार 51 हज़ार कलशों द्वारा विशाल शोभा यात्रा और साथ ही भागवत रत्न पूज्य बड़े गुरुदेव द्वारा श्रीमद भागवत कथा (ज्ञान यज्ञ) का विशाल आयोजन। सामान्यतः हर शोभा यात्रा में 108 कलश होते हैं और अधिकतम तौर पर 1008 होते हैं परन्तु ये पहली बार 51 हज़ार कलश यात्रा में शामिल होंगे। 

दिनांक: 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 
समय: दोपहर 01:00 बजे से 05:00 बजे पर्यन्त 
स्थान: भोपाल रोड, देवास, मध्य प्रदेश 

आगामी कार्यक्रम 

03 जनवरी से 09 जनवरी : धनबाद, झारखण्ड 

10 जनवरी से 16 जनवरी : पीतमपुरा, दिल्ली 

19 जनवरी से 25 जनवरी : गोवर्धन, मथुरा 

26 जनवरी से 01 फरवरी : आदर्श नगर, दिल्ली 


श्रधेय आचार्य श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज 


पूज्य गुरुदेव को राधारानी की कृपा से एस सौभाग्य प्राप्त है कि वो एक वर्ष में अनेक जगह भागवत की कथा को कहते हैं और भक्तों के बीच में राधा नाम की मस्ती लुटाते हैं। अनेक जगह वो पहली बार जाते है और कोई जगह इसी होती है जहाँ वो काफी समय से निरंतर आ रहे हैं। बन्धुओ दिल्ली स्थित कमला नगर की भूमि इतनी पवित्र है की यहाँ पिछले 18 वर्षों से निरंतर और नियमित रूप से गुरूजी कथा कर रहे हैं और मुझे यह कहते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि इस बार उन्नीसवी कथा का भी विशाल आयोजन यहाँ संपन्न होगा। यह मेरा सौभाग्य है कि कमला नगर मेरा जन्म स्थान और निवास स्थान भी है। 

दिनांक: 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर, 2012
समय: दोपहर 03:00 बजे से 07:00 बजे पर्यन्त 
स्थान: श्री मधुबन वाटिका, बिरला स्कूल, कमला नगर, दिल्ली 

इस वर्ष इस कथा में मानव सेवा हेतु 27 दिसम्बर, 2012 को रक्त दान शिविर का भी आयोजन किया गया है।

आगामी कार्यक्रम 

03 जनवरी से 10 जनवरी : इस्कॉन हाउस, कोल्कता 

12 जनवरी से 18 जनवरी : लेक टाउन, कोल्कता 

31 जनवरी से 06 फरवरी : शालीमार बाग, दिल्ली   

Saturday, December 8, 2012

लील्ये की लीला

आप सब भक्तों को सादर प्रणाम करके इस लेख का प्रारंभ करने जा रहा हूँ और आज आपको एक ऐसी अद्भुत लीला का वर्णन करूँगा जिसे पढ़कर आपके ह्रदय में रोमांच और प्रेम प्रफुल्लित हो जायेगा। आज के इस मॉडर्न ज़माने में एक चीज़ जो बहुत प्रचलित है वह है अपने शरीर के अंग पर चित्रकारी जिसे हम सब टैटू के नाम से जानते है। वास्तविकता में यह एक कला है जिसका उपयोग आज बहुत ही गलत ढंग से किया जा रहा है। पहले हमारी माताएं बहने अपने पति का नाम अपने हाथों पर गुद्वाती थीं। इसके दो प्रमुख कारण थे, सर्व्प्रथान तो इससे हमेशा अपने प्राण-प्रियतम का स्मरण बना रहता है और जैसा पहले स्त्रियाँ अपने पति का नाम नहीं लिया करी थीं, तो यदि कहीं उनका नाम बोलना पड़े तो वे अपना हाथ दिखा देती थीं। पर आज तो लोग इसे अपने शरीर का श्रृंगार समझते हैं। ऐसी ऐसी तसवीरें अपने हाथों पर बनवा लेते हैं कि क्या कहूँ। मैंने एक बार देखा एक भले मानुष ने कंकाल की खोपड़ी अपनी बाजुओं पर बनवा राखी थी और नीचे लिखा था "खतरा", वो खुद ही अपनी हकीकत ज़माने को बता रहा था। पर नहीं, यह कला भारत की धरोहर है जिसे आज पाश्चात्य संस्कृति कुछ अलग ही रूप देकर दुनिया को सिखा रही है। लेख पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए मै आप सबको बता देना चाहता हूँ कि प्राचीन समय में इस टैटू को "लील्या" कहा जाता था। इसी लील्ये से जुडी हमारे लीलाधर वंशीधर आनंदकंद वृन्दावन बिहारी श्री कृष्ण की एक अत्यंत मधुर लीला है जिसका वर्णन अभी करने जा रहा हूँ। 

एक समय की बात है, जब किशोरी जी को यह पता चला कि कृष्ण पूरे गोकुल में माखन चोर कहलाता है तो उन्हें बहुत बुरा लगा उन्होंने कृष्ण को चोरी छोड़ देने का बहुत आग्रह किया पर जब ठाकुर अपनी माँ की नहीं सुनते तो अपनी प्रियतमा की कहा से सुनते। उन्होंने माखन चोरी की अपनी लीला को उसी प्रकार जारी रखा। एक दिन राधा रानी ठाकुर को सबक सिखाने के लिए उनसे रूठ कर बैठ गयी। अनेक दिन बीत गए पर वो कृष्ण से मिलने नहीं आई। जब कृष्णा उन्हें मानाने गया तो वहां भी उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। तो अपनी राधा को मानाने के लिए इस लीलाधर को एक लीला सूझी। ब्रज में लील्या गोदने वाली स्त्री को लालिहारण कहा जाता है। तो कृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में घूमने लगे। जब वो बरसाने की ऊंची अटरिया के नीचे आये तो आवाज़ देने लगे:

मै दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी 
दीदार की मई प्यासी हूँ मुझे दर्शन दो वृषभानु दुलारी 
हाथ जोड़ विनती करूँ, अर्ज ये मान लो हमारी 
आपकी गलिन में गुहार करूँ, लील्या गुदवा लो प्यारी 

जब किशोरी जी ने यह करूँ पुकार सुनी तो तुरंत विशाखा सखी को भेजा और उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा। घूंघट में अपने मुह को छिपाते हुए कृष्ण किशोरी जी के सामने पहुंचे और उनका हाथ पकड़ कर बोले कि कहो सुकुमारी तुम्हारे हाथ पे किसका नाम लिखूं। तो किशोरी जी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्री अंग पर लील्या गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरी जी बता रही हैं:

माथे पे मदन मोहन, पलकों पे पीताम्बर धारी 
नासिका पे नटवर, कपोलों पे कृष्ण मुरारी 
अधरों पे अच्युत, गर्दन पे गोवर्धन धारी 
कानो में केशव और भृकुटी पे भुजा चार धारी 

छाती पे चालिया, और कमर पे कन्हैया 
जंघाओं पे जनार्दन, उदर पे ऊखल बंधैया 
गुदाओं पर ग्वाल, नाभि पे नाग नथैया 
बाहों पे लिख बनवारी, हथेली पे हलधर के भैया 

नखों पे लिख नारायण, पैरों पे जग पालनहारी 
चरणों में चोर माखन का, मन में मोर मुकुट धारी 
नैनो में तू गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी 
और रोम रोम पे मेरे लिखदे, रसिया रणछोर वो रास बिहारी 


जब ठाकुर जी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पे मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो ख़ुशी से बौरा गए प्रभु। उन्हें अपनी सुध न रही, वो भूल गए कि वो एक लालिहारण के वेश में बरसाने के महल में राधा के सामने ही बैठे हैं। वो खड़े होकर जोर जोर से नाचने लगे और उछलने लगे। उनके इस व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ की इस लालिहारण को क्या हो गया। और तभी उनका घूंघट गिर गया और ललिता सखी ने उनकी सांवरी सूरत का दर्शन हो गया और वो जोर से बोल उठी कि ये तो वही बांके बिहारी ही है। अपने प्रेम के इज़हार पर किशोरी जी बहुत लज्जित हो गयी और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था। उधर ठाकुर भी किशोरी का अपने प्रति अपार प्रेम जानकार गद्गद हो गए। 

तो ये थी उस पवित्र लील्ये की पवन लीला। हम आशा करते हैं कि आपको इस लीला का विवरण पढने में आनंद आया होगा और आपकी प्रतिक्रियाओं का हार्दिक स्वागत है। एक और सूचना मई सब भक्तों को देना चाहूँगा कि इस वर्ष "बिहार पंचमी" का पवन पर्व 17 दिसम्बर को वृन्दावन में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा। ठाकुर श्री बांके बिहारी जी के प्रादुर्भाव दिवस के उपलक्ष्य में स्वामी जी की विशाल सवारी निधिवन से मंदिर पधारेगी। इस बिहार पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है क्योंकि इसी तिथि को त्रेता में भगवान् राम का माँ जानकी से विवाह हुआ था। 

आप सबको बिहार पंचमी की बहुत बहुत बधाई।   

Sunday, November 11, 2012

कार्तिक मास, दीपावली एवं आगामी कार्यक्रम

टेढ़े टिपारे कटारे किरीट की, मांग की पाग की धारी की जय जय 
कुंडल जाए कपोलन ते, मुस्कानहू धीर प्रहारी की जय जय 
रासेश्वरी दिन रात रटूं, यही मोहन की बनवारी की जय जय 
प्रेम से बोलो जी बोलत डोलो, बोलो श्री बांके बिहारी की जय जय 



 वैसे तो पूरे दिन में एसा एक क्षण भी नहीं है जिसमे ठाकुर को वंदन न किया जा सके, ठाकुर जी की पूजा ही इस दुनिया में ऐसी है जिसके लिए कोई मुहूर्त निकलवाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, जिस समय उनका नाम हमारे मुख से निकल जाए वही समय शुभ हो जाता है। इसलिए आज इस लेख की शुरुआत मै  ठाकुर जी को प्रणाम करके ही करने जा रहा हूँ। 

हमारी वैष्णव संस्कृति में कुछ महीनो का अध्यात्म की दृष्टि से वेशेष महत्त्व होता है, उदहारणतः श्रावण, मार्गशीर्ष, फाल्गुन और कार्तिक। कार्तिक मास अति पवित्र और उल्लासपूर्ण होता है क्योंकि हिन्दुओ के सभी विशेष पर्व एवं त्यौहार इस कार्तिक मास में आते हैं। यदि मै कहूँ की कार्तिक मास अपने आप में खुद एक त्यौहार है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सर्वप्रथम कृष्ण पक्ष चतुर्थी को करवा चौथ, फिर अष्टमी को अहोई अष्टमी, त्रयोदशी को धनतेरस, चतुर्दशी को छोटी दिवाली (रूप चतुर्दशी), अमावस्या को महापर्व दीपावली, शुक्ल पक्ष प्रथम को गोवर्धन पूजा, द्वितीय को भाई दूज, अष्टमी को गोपाष्टमी, नवमी को अक्षय नवमी और एकादसी को देव प्रबोधिनी एकादसी। एक साथ इतने सारे त्यौहार अन्य किसी मास में नहीं आते। और केवल हिन्दुओ के नहीं नहीं, बल्कि हमारे सिख भाइयों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व भी कार्तिक की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है। 

हमारे वृन्दावन में दीपावली की धूम कार्तिक मास के पहले दिन से ही दीप दान के साथ शुरू हो जाती है। भक्त जन बिहारी जी के सामने घी या तेल के दिए जलाते हैं और मन में यही भाव रखते हैं कि इस दिए की तरह ही हमारा जीवन भी खुशियों से सदा रोशन रहे। पर मै यदि व्यक्तिगत तौर पे अपनी बात करूँ तो मेरा मानना कुछ अलग है। हमें उस दीये से त्याग, समभाव और बांटने की शिक्षा लेनी चाहिए। जिस प्रकार एक दीया खुद को जलाकर प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार हमें भी अपने आस पास अच्छाई की रौशनी से बुराई के अँधेरे का नाश करना चाहिए। हम दीये में जितना घी या तेल डालते हैं, वह उसे प्रकाश देने में जला देता है, हमें भी अपने धन का सदुपयोग करते हुए ज्ञान बांटना चाहिए। और अंत में जिस प्रकार दीया अपनी रौशनी देने में अमीर गरीब या जात-पात का भेद नहीं करता, हमारी दृष्टि भी इतनी ही व्यापक और सबको भगवान् के बन्दों के रूप में देखने वाली होनी चाहिए।
देहली ऊपर दीप जलना अच्छा है 
अन्धकार को दूर भगाना अच्छा है 
बाहर लाखों दीप जलें हैं जलने दो 
पर मन के भीतर दीप जलाना अच्छा है 

वृन्दावन में दीपावली के शुभ अवसर पर बांके बिहारी जी महाराज का सिंहासन बदल दिया जाता है, गर्मियों में जो सिंहासन रखा होता है, उसकी जगह अब एक विशाल हटरी आ जाती है जिसके खम्ब चांदी से निर्मित है और चांदी की ही छत भी है। इस हटरी पर मखमल के कपडे से सजावट की जाती है। ग्रीष्म काल में बिहारी जी हलके रंग के कपडे पहनते हैं पर दीपावली के साथ उनकी पोशाक में भी सर्दियों की ठण्ड की झलक मिल जाती है। साधारण तौर पे जब हम वृन्दावन जाते हैं, तो बिहारी जी का दर्शन करके हम बाकि साड़ी दुनिया को भूल जाते हैं और केवल प्रभु की आँखों में खो जाते है, पर दीपावली एक एसा पर्व है जिसकी चका चौंध में दर्शन ही करना भूल जाते हैं। अर्थार्थ दीपावली के अवसर पर मंदिर को इतने सुंदर तरीके से सजाया जाता है, वहां इतनी जगमगाहट होती है, कि भक्त बिहारी जी को नहीं उनके मंदिर को देख के ही बहार आ जाते है। पर जो भक्त उनका दर्शन करते हैं वो देखते हैं उनकी आँखों में एक शरारती चमक, एक बेमिसाल और लाजवाब मुस्कराहट जो हमेशा उनके अधरों की शोभा बनती है और एक इशारा जो उनके हर दीवाने को उनकी तरफ आकर्षित करता है, उनका श्रृंगार जिसे देख के संतों ने कितना सुंदर लिखा 
जामा बन्यो जरदारी को सुंदर, लाल है बंद और ज़र्द किनारी 
झालरदार बन्यो पटुका या में, मोतिन की छवि लगत प्यारी 
घायल करे याकी बांकी अदा, और नज़र चलावें जिगर कटारी 
भक्तन दर्शन देने के कारण, झांकी झरोखा में बांके बिहारी 

दीपावली के अगले दिन अन्नकूट या श्री गिरिराज पूजन किया जाता है। गिरिराज महारज को भोग लगाने के लिए अनेक व्यंजन और पकवान बनाये जाते है। क्योंकि गोवेर्धन नाथ का विशाल रूप है इसलिए उनका भोग भी विशाल मात्र में बनाया जाता है और दोपहर में राज भोग के बाद सभी भक्तों में बाँट दिया जाता है। हम सब जानते है की श्री गिरिराज महाराज और कोई नहीं, साक्षात् बिहारी जी का ही रूप हैं और इस बात की पुष्टि श्रीमद भागवत महापुराण में स्वयं भगवान् ने की है। 

उसके अगले दिन भाई दूज का पवित्र पर्व मनाया जाता है। एसी मान्यता है कि श्री यमुना महारानी ने अपने भाई धर्मराज (यमराज) से यह वरदान माँगा था कि जो भाई-बहन एक दुसरे का हाथ पकड़ के कार्तिक शुक्ल द्वादशी को मेरे जल में स्नान करेंगे उनको आप अपने लोक कभी नहीं ले जायेंगे और तब से यह पर्व भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा।

अलग अलग प्रान्तों में और देश के विभिन्न हिस्सों में इस पञ्च दिवसीय महापर्व को एक अनूठे ढंग से मनाया जाता है। पर एक बात जो बात हर जगह समान रहती है वह है महा लक्ष्मी का पूजन और प्रेम पूर्ण मिलन। दीपावली के दिन तो लोग लक्ष्मी-गणेश जी की अर्चना करते ही हैं, पर उससे पूर्व सब अपने मित्र, बंधुओ-बांधवों से मिलते है और उपहार, मिष्टान आदि का आदान-प्रदान होता है। सच कहूँ तो यह लेना-देना तो केवल एक बहाना है, असली मकसद तो आपसी तनाव को दूर करना और रिश्तों में मिठास घोलने का होता है, यही हमारी संस्कृति है और यही हमारी परंपरा भी है। अपनी संस्कृति के सम्मान में मेरा बहुत मन है की अपने सब पाठकों को कुछ भेंट दूं पर हम इस लायक कहाँ कि किसी को कुछ दे सकें। परन्तु हाँ इस बार हमारे पूज्य गुरुदेव ने आप सबके लिए दिवाली के तोहफे का अच्छा इंतज़ाम किया है, ख़ास तौर पर दिल्ली के भक्तों के लिए। अगले संपूर्ण मास में पूज्य गुरुदेव अपनी कथा का अमृत दिल्ली में लुटाएंगे, आपको पूरी जानकारी नीचे दिए गए आगामी कार्यक्रम की सूची से मिल जाएगी।



श्रधेय आ० गो० श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज 

16 नवम्बर से 22 नवम्बर 2012 : खीम्सार, राजस्थान 
09 दिसम्बर से 15 दिसम्बर 2012 : पीतमपुरा, दिल्ली 
17 दिसम्बर से 23 दिसम्बर 2012 : श्री कृष्णा जन्मभूमि, मथुरा 
25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2012 : देवास, इंदौर, मध्य प्रदेश 


श्रधेय आ० श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज

16 नवम्बर से 22 नवम्बर 2012 : रामलीला मैदान परिसर, मुरार, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
24 नवम्बर से 30 नवम्बर 2012 : भोपाल, मध्य प्रदेश
01 दिसम्बर से 07 दिसम्बर : पश्चिम विहार, दिल्ली
 09 दिसम्बर से 15 दिसम्बर 2012 : झारसुगुडा, ओडिशा
17 दिसम्बर से 23 दिसम्बर 2012 : शाहदरा, दिल्ली
25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2012 : कमला नगर, दिल्ली


अंत में आप सब को शुभकामनाये देकर अपने लेख को विश्राम देना चाहूँगा और आशा करूँगा की आप सबकी दीपावली और आने वाला वर्ष मंगलमय हो। 

Friday, October 26, 2012

शरद पूर्णिमा

ब्रजराज तेरी याद भुलाई नहीं जाती 
ये प्रेम कहानी है, सुने नहीं जाती 
तुम मेरे मसीहा हो, करो दर्द का दावा 
उठी टीस कलेजे में, दबाई नहीं जाती 
मुझे इतनी पिला दे, के फिर होश ही न आये 
या साफ़ कहदे की पिलाई नहीं जाती 
मै ढूंढ रहीं हूँ मगर, तेरा दर नहीं मिलता 
दर दर की ठोकरें हैं, खाई नहीं जाती 


वृन्दावन की गोपियों से लेकर दर्द दीवानी मीरा तक, इस सांवरी सलोनी सूरत के अनेक दीवाने और आशिक हुए हैं और हर प्रेमी का भाव इतना विलक्षण होता है कि चर्चा करते करते ज़िन्दगी छोटी लगने लगती है। हर प्रेमी अपने अलग ढंग से अपने ठाकुर को रिझाता है और अपने अनोखे भाव ठाकुर के चरणों में समर्पित करता है। कोई सकाम भक्ति करता है तो कोई निष्काम भक्ति करता है। कोई उनसे कुछ नहीं चाहता तो कोई उनसे सब कुछ चाहता है। हर भक्त उनके अलग अलग रूप की पूजा करता है, कोई बनके बिहारी को मानता  है, कोई राधा रमण को, कोई राधा वल्लभ को, कोई द्वारिकाधीश को तो कोई श्री नाथ जी को। परन्तु कन्हैया के हर प्रेमी के ह्रदय में एक समानता होती है, उनका हर भक्त उनके साथ रास करना चाहता है। ये इच्छा हर साधक के मन में होती है की प्रभु उसे भी अपने उस दिव्य महारास का दर्शन कराएं। बंधुओ यह महारास लीला कोई साधारण लीला नहीं है। मुझे तो उन पर दया आती है जो इस अद्भुत लीला को संदेह की निगाह से देखते है। बड़े बड़े योगी और स्वयं योगेश्वर भगवन शिव अपने ध्यान में इसी महारास का चिंतन करते हैं और उन्हें भी इसके दर्शन नहीं हो पाते। श्रीमद्भागवत जैसे परम विशाल ग्रन्थ में भी महारास का विस्तृत वर्णन नहीं मिलता। श्री शुकदेव जी महाराज भी इस लीला के रहस्य को रजा परीक्षित से छुपा गए क्यूंकि इस महारास का वर्णन नहीं, इसका तो केवल दर्शन हो सकता है। इसका वर्णन कौन करेगा? और इसका दर्शन भी और कोई नहीं स्वयं किशोरी जी अपने कृपा पात्रों को कराती है। जैसा की पूज्य गुरुदेव बताते हैं, महारास तक पहुँचने की तीन सीढियां हैं, सबसे पहले तो हमें संसार की मोह-माया से विरक्त होके श्री धाम वृन्दावन में वास करना होता है, उसके बाद किसी रसिक आचार्य की शरण में स्वामी जी का दास बनना होता है और जब हमारी भक्ति परिपक्व स्तिथि पे पहुच जाएगी तो राधे जू कृपा करेंगी और हमें रास का दर्शन होगा। 


ये महारास की लीला भगवन ने द्वापर युग में रचाई थी और आज से साढ़े पांच हज़ार वर्ष पूर्व इस लीला का विश्राम भी हो गया था, परन्तु आज से 500 वर्ष पूर्व जब अनन्य रसिक नृपति स्वामी श्री हरिदास जी महराज जब वृन्दावन पधारे तो निधिवन के कुंजो में उन्होंने पुनः इस महारास की दिव्या लीला का प्रारंभ करवाया और यह परंपरा आज तक निधिवन में प्रतिदिन होती है, हर रात वहां रास होता है। और इस निकुंज की लीला का वर्णन स्वामी जी ने अपने पदों में किया जिनका संग्रह केलिमाल में हमें प्राप्त होता है। स्वामी जी ने रास में कितना सुंदर लिखा है:
सुन धुन मुरली वन बाजे हरी रास रचो 
कुञ्ज कुञ्ज द्रुम बेली प्रफुल्लित, मंडल कंचन मणिन खचो 
निरखत जुगल किशोर जुबती जन, मन मेरे राग केदारो मचो 
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा, नीके री आज प्यारो लाल नचो 


इस महारास का एक अटूट अंग गोपी गीत भी है। गोपी गीत के बारे में तो किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। भागवत पुराण के प्राण बसते हैं गोपी गीत में। और गोपी गीत का कारन भी हमें ज्ञात ही है। जब भगवन गोपियों के अहंकार को दूर करने के लिए उनके सामने से अदृश्य हुए थे तो गोपियों ने सुर में रुदन किया था और इस गोपी गीत को गया था। गोपियाँ यमुना से पूछती थी, कभी निधिवन से पूछती थी, कभी तुलसी से पूछती थी और जब भगवान् नहीं मिले तो गोपियों ने ढूंढना बंद कर दिया और फिर वो प्रभु के प्रेम में खो गयी। वास्तविकता में भी इस दुनिया के लोग ढूँढने से मिलते होंगे, पर मेरे बनके बिहारी तो खोने से ही मिलते है। "किसी से उनकी मंजिल का पता पाया नहीं जाता, जहाँ वो हैं फरिश्तों से वहां जाया नहीं जाता". किसी भक्त ने गोपियों के भावों को बड़े सुंदर शब्द में लिखा जो आपको बताना चाहता हूँ:

सबब रूठने का बता कर तो जाते 
हमें भी ज़रा आजमाकर तो जाते 
फिज़ाओं से पुछा कई बार तुमको 
झलक बस ज़रा सी दिखा कर तो जाते 
मुस्कुरा रही थी चमन में बहारें
मुहब्बत के नगमे सुना कर तो जाते 
दिया दर्द-इ-दिल कोई शिकवा नहीं है 
पता तुम अपना बता कर तो जाते 
अगर बेसबब थी हमारी शिकायत 
ज़रा आँख हमसे मिलाकर तो जाते
ज़रा और रुकते तो होती इनायत 
जनाज़ा हमारा उठा कर तो जाते  

गोपी और महारास के भावों का वर्णन करना तो इस लेख की सीमाओं से परे है और ये तुच्छ बुद्धि भी इस लायक नहीं है की निकुंज लीला के एक कण की भी चर्चा कर सके। मैंने तो केवल एक छोटा सा प्रयास किया है की आपको रास के रस से अवगत करा सकूँ। यह महारास लीला अश्विन पूर्णिमा के दिन ही हुई थी जिसे हम शरद पूर्णिमा के रूप में जानते हैं। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 29 अक्टूबर को मनाई जाएगी और वृन्दावन के भक्ति मंदिर में 'साध्वी' पूर्णिमा जी (पूनम दीदी) की भाव पूर्ण भजन संध्या का विशाल आयोजन किया गया है। आप सब भक्त वहां सादर आमंत्रित हैं। शरद पूर्णिमा के दिन तो वृन्दावन के दर्शनों का अति विशेष महत्व है। अपने देखा होगा की ठाकुर श्री बांके बिहारी जी कभी अपने हाथ में मुरली नहीं रखते, परन्तु शरद पूर्णिमा के संध्या कालीन दर्शनों में बिहारी जी के हाथ में मुरली, कटी काछनी और सर पर मोर-मुकुट का श्रृंगार होता है। बिहारी जी अपने कक्ष से बहार भक्तों के समीप आ जाते है। मंदिर के प्रांगन को एक वन का रूप दिया जाता है जिसमे एक चांदी के घरोंदे में प्रभु आसीन होते हैं। सांवली सूरत पे पूर्ण श्वेत पोशाक इस प्रकार सुशोभित होती है जैसे अँधेरे आकाश में चन्द्रमा। आ के दिन तो चाँद के भी भाग्य उदय हो जाते हैं क्यूंकि आज तो मंदिर उस समय तक खुला रहता है जब तक चाँद बिहारी जी के चरणों को स्पर्श ना कर ले। आप सब जानते होंगे की बिहारी जी पश्चिम दिशा में पूर्व की तरफ मुख करके खड़े हुए हैं और शरद पूर्णिमा पे चाँद भी पूर्व से ही उदय होता है। इसलिए आज मंदिर के सामने वाली खिड़की और रोशनदान खोल दिए जाते हैं जिससे चाँद दर्शन पा सके। 


बिहारी जी के श्रृंगार यूँ तो अनंत हैं, पर फिर भी मर्यादाओं का पालन करते हुए मै यहीं अपने शब्दों को विराम देता हूँ और यही प्रार्थना करता हूँ की हमें प्रभु के चरणों का नुराग इसी प्रकार बना रहे और हमें भी वो मुरली वाला एक दिन गोपी बनाकर अपने साथ रास में ले चले। इसी आशा को मन में रखते हुए मई आप सबको हमारे परिवार की तरफ से शरद पूर्णिमा की बहुत बहुत शुभकामना देता हूँ और गुरु चरणों में प्रणाम करता हूँ। 


~~~~~~~ श्री राधे ~~~~~~ 




Saturday, October 13, 2012

नवरात्रों के रंग, शेरोंवाली के संग

आप सब लोग समझ ही गए होंगे कि आज के लेख की पृष्ठभूमि क्या है. आज एक बात आप सब बंधुओ को दिल से बताना चाहता हूँ. बहुत दिनों से दिल में एक अरमान है और एक उत्सुकता है कि आप लोगों को एक लीला का दर्शन अपने लेख के माध्यम से करवाऊं जो मुझे विश्वास है कि अधिकतर भक्तों ने नहीं सुनी होगी. परन्तु धन्य है ये हमारे भारत की भूमि जहाँ एक के बाद एक पर्व और त्यौहार आते ही रहते हैं और मुझे आपको इन सबके विषय में कुछ बताने का दिल करता है. कई बार गहन चिंतन में डूबता हूँ तो ये ख्याल आते हैं कि अगर इन त्यौहारों के रंग हमारे जीवन में न हो, तो यह जिंदगी जो पहले से ही इतनी चिंतामग्न रहती है और भी नीरस हो जायेगी और इसे संभालना एक बोझ हो जायेगा. इन त्यौहारों के माध्यम से हमारे जीवन में हर्षोल्लास और एक सकारात्मक उर्जा का प्रसार होता है जो हमारी मुश्किलों मो कम तो नहीं करती परन्तु उनका सामना करने कि शक्ति हमें प्रदान करती है. जब जिंदगी की परेशानियों से हाम हारने लगते हैं तो यह पर्व ही हैं जो हमें कहते हैं कि क्या हुआ अगर मुसीबतें हैं मत भूल कि यहाँ मज़ा भी बड़ा आता है. और जब इन सतरंगी त्यौहारों के साथ अध्यात्म का आठवां रंग मिल जाए तो आनंद की सीमा नहीं रहती और वैसे भी बंधुओ ये तो हमारे पूर्वजों की मान्यताएं हैं कि किसी तिथि को हम विशेष रूप से मनाने लगते हैं वर्ना तो जिस दिन इश्वर का आगमन हमारे जीवन में हो जाये वो हर दिन होली और हर रात दिवाली है. इसलिए संत कितना सुंदर कहते हैं 

तुम्हारा आना फाल्गुन की बहारों जैसा है
तुम्हारा आना सावन की फुहारों जैसा है
ये शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की तिथियाँ क्या गिनना
तुम्हारी तो याद का आना भी त्यौहारों जैसा है

और धन्य हैं हमारे त्यौहार जो केवल इश्वर की याद नहीं दिलाते अपितु भगवान को ही हमारे आंगन में उतार लातें हैं और धन्य हैं हम जो हमें इस पवित्र भूमि भारत में जन्म लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ. वैसे तो पितृ-पक्ष के साथ त्यौहारों का मौसम दस्तक दे ही चुका है, पर जो पर्व हम श्राद्ध विसर्जन के ठीक अगले दिन शुरू करेंगे उसका नाम है "नवरात्र".


महामाया, महादायालू, महाशक्ति, सुख्करनी, दुख्हरनी, परम ममतामयी अष्टभुजी भवानी माँ शेरोवाली को समर्पित यह नवरात्रि पूरे भारत में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है. चाहे वैष्णव हो, शैव हो, इस पर्व को प्रत्येक संप्रदाय के अनुयायी बड़ी श्रद्धा और भक्तिभाव से मानते हैं क्यूंकि शक्ति कि ज़रूरत तो हर किसी को पड़ती है.  यदि हम राधे जू कि भी भक्ति करते हैं और उसकी शुरुआत भी माँ जगदम्बा से ही प्रारंभ होती है. हमारे शास्त्रों में ४ बीज मन्त्रों का व्याख्यान आया है -- "एं, भ्रीम्, श्रीं और क्लीम्". ये चारों बीज मंत्र जब तक कोई साधक सिद्ध नहीं कर लेता उसे भक्ति का अनुभव होना मुश्किल है. पहला बीज मंत्र है 'एं' जिसकी अधिष्ठात्री देवी माँ दुर्गा हैं. माँ दुर्गा ही शक्तिस्वरूपा हैं. और जैसा मै पहले भी लिख चुका हूँ कि इस संसार में हम कोई भी कर्म करें भले ही वेह भक्ति से सम्बंधित न हो तो भी हमें शक्ति कि आवश्यकता होती है. यहाँ तक कि चोर को चोरी करने के लिए भी माँ दुर्गा की कृपा चाहिए. और यदि इस शक्ति को इस कृपा को हम भक्ति और अध्यात्म में इस्तमाल करें तो बात बहुत आगे बढ़ जाती है. हमें बैरंग्ताओं में भी शक्ति चाहिए. हम यदि माँ दुर्गा के विग्रह की तरफ नज़र डालें तो देखते हैं कि माँ कि आठ भुजाएं हैं जिनमे से एक हाथ से माँ आशीर्वाद दे रही है और शेष सात भुजाओं में माँ ने शस्त्र धारण कर रखे हैं. ये शस्त्र हमें डराने के लिए बल्कि असुरी वृतियों के संघार के लिए हैं. जब हम भक्ति के पथ पर अग्रसर होते है तो हमारे अंदर अनेक बुराइयां और कल्मष होते हैं. जब हम माँ दुर्गा की शरण ग्रहण करते हैं तो धीरे धीरे माँ अपनी ममता और करुना से इन सबका दमन कर देती हैं और हमें इस लायक बना देती हैं कि परमात्म तत्व की प्राप्ति हमें हो सके. इसलिए कोई भी भक्त माँ दुर्गा कि ज़रूरत को नज़रंदाज़ नहीं कर सकता, जब तक माँ कृपा न करे बात आगे बढ़ ही नहीं सकती. इसके बाद सगला बीज मंत्र है 'भ्रीम्' अर्थार्थ हृष्टि, पुष्टि और तुष्टि. हम स्वस्थ रहे क्यूंकि बिना उत्तम स्वास्थ्य के प्रभु चरणों का अनुराग नहीं हो सकता. फ़िर है 'श्रीं' जिसकी अधिष्ठात्री हैं माँ लक्ष्मी जो धन और ऐश्वर्य की देवी हैं. भक्ति मार्ग में भी हमें धन की उपयुक्त मात्रा की आवश्यकता होती है जो हमें माँ लक्ष्मी की कृपा से प्राप्त होता है और जब यह सब हो जाता है तब आता है 'क्लीम्' अर्थार्थ करुणा और प्रेम जिसकी अधिष्ठात्री हमारी बरसाने वारी राधा प्यारी है. 

उन्ही माँ दुर्गा को समर्पित यह नवरात्रे वर्ष में २ बार आते हैं और साथ मैया जी को हमारे आंगन में ले आते हैं. इस वर्ष शारदीय नवरात्रि मंगलवार, १६ अक्टूबर से प्रारंभ हो रहे हैं और बुधवार २४ अक्टूबर को दशहरा मनाया जायेगा. देश के अलग अलग प्रान्तों में इस पर्व को विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है. बंगाल में दुर्गा पूजा के माध्यम से, गुजरात से डांडिया आदि नृत्यों के माध्यम से, और अनेक जगह प्रभु श्री राम की दिव्या लीलाओं का मंचन किया जाता है. तरीका चाहे जो भी हो, सबका उद्देश्य तो केवल आनंद की प्राप्ति होता है. हमारे देश में वैसे तो माँ वैष्णो के अनेकानेक भक्त हुए हैं जिनकी कथाएँ हम सब सुनते ही है, इनमे प्रमुख थे श्री ध्यानु जी महाराज जिनके समक्ष स्वयं अकबर भी नतमस्तक हो गया था और इस बात का प्रत्याख प्रमाण वेह छत्र है जो आज भी माँ ज्वाला के मंदिर में रखा हुआ है. परन्तु एक ऐसे शख्स हमारे बीच में आज भी उपस्थित हैं जिनके सिर पर माँ ने अपनी कृपा और करुणा का वरद हस्त रखा हुआ है. जिनकी आवाज़ हमारे घरों में, हमारे दिलों में हमेशा गूंजती रहती है, जिन्होंने अनेक भक्तों को माँ से जोड़ा है और संगीत के माध्यम से जो कई वर्षों से माँ के नाम का प्रचार निरंतर कर रहे हैं, जी हाँ, मै बात कर रहा हूँ, माँ के लाडले परम आदरणीय श्री नरेन्द्र चंचल जी की जिनकी भेंट चन्द्रमा की चांदनी से भी अधिक शीतल और सुखदायी होती हैं. मै यहाँ उनकी कुछ भेंट आप सबको उपलब्ध करा रहा हूँ और आप इन्टरनेट पर इनके अनगिनत भजनों को सुन सकते हैं. 


अंत में इसी प्रार्थना के साथ अपनी कलम को विश्राम देता हूँ कि माता राणी आप सब पे अपनी कृपा बरसाती रहे और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हों. 

श्री राधे ~~~~~ जय माता दी ~~~~~ श्री राधे 

Tuesday, October 2, 2012

आगामी कार्यक्रम

कथा व्यास


श्रधेय आ० गो० श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज

04 अक्टूबर से 10 अक्टूबर : दिलशाद गार्डन, नई दिल्ली 

16 अक्टूबर से 22 अक्टूबर : नौखा, बीकानेर, राजस्थान 

1 नवम्बर से 7 नवम्बर : प्रभु टाउन, रायबरेली, उत्तर प्रदेश 

इन सभी कथाओं का सीधा उया विशेष प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर देखा जा सकता है। प्रसारण के विषय पर जानकारी आपको हमारी तरफ से समय समय पर मिलती रहेगी 

.. प्रेम से कहिये श्री राधे .. 

Friday, September 28, 2012

Laadali Adbhut Nazara Tere Barsane Mai Hai...!!


Barsana , one of the most stunning place of our Brij Dham,  is famous for divine love of Goddess, Radha Rani.  The religious values of Barsana make it different from other religious destinations.

Luckily with the grace of radha rani, on this radha asatami  we are able to visit this beautiful place, it was an awsome experince to be in barsana on radha astami, can'nt describe in word, how much we enjoyed their,here  is some of pics that, we had taken during our visit.






I feel extremely blessed to have opportunity to  attended a wonderful bhajan  sandhya, by shri Govind Bhargav ji, at Shriji Mahal. He is really a fantastic singer and down to earth person.


Here is few awesome, mind blowing  bhajans  sungs by Bhargav, as usual in his stunning voice, can be downloaded from given, links.

Please leave comment, if you like or if facing any  problem in downloading bhajans or thought , experiences which you would like to shares.

Bolo jai jai shri radhe.

1. Ladali adbhut nazara tere barsane mai hai:   TO DOWNLOAD CLICK HERE

2. Kanhaya le chal parli paar : TO DOWNLOAD CLICK HERE

3. Mai to sooy rahi sapne mai : TO DOWNLOAD CLICK HERE

4. Karte ho tum kanihya : TO DOWNLOAD CLICK HERE



--radhe------radhe--------radhe---------radhe-------radhe----radhe--------radhe-


Friday, September 21, 2012

राधाष्टमी एवं स्वामी श्री हरिदास जयंती

किशोरी सुंदर श्यामा, तू ही सरकार मेरी है 
नहीं है औरन से मतलब, मुझे एक आस तेरी है
किशोरी सुंदर श्यामा मुझे विपदा ने घेरी है
दर्श दे के कृपा कीजो, फ़िर काहे की देरी है
टहल बक्शो महल निज को, विनय कर जोर मेरी है
सरस यह माधुरी दासी, तेरे चरणों की चेरी है

परम आदरणीय भक्तजनों, कथा प्रेमियों, भजन रसिकों एवं प्रिय पाठकों, आप सबको इस नाचीज़ की तरफ से "जय श्री राधे". आज यह लेख लिखते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है परन्तु साथ ही मेरे हाथ भी काँप रहे हैं क्योंकि आज मै उनके विषय में लिखने जा रहा हूँ जो अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक, आनंद निकुंजेश्वर श्री बांके बिहारी की भी परम अह्लाद्नी शक्ति हैं. जी हाँ, आज मै हम सबकी प्यारी, बरसाने वारी श्री राधा राणी के बारे में लिखने का दुस्साहस करूँगा. 

इस धरती पर जितने वृक्ष हैं, यदि उन सबकी कलम बना दी जाये, जीता समुद्र में जल है, यदि उतनी स्याही बना दी जाये और जितनी जगह इस धरती पर है, उस सब को कागज़ बना दिया जाए तो भी गुरु की महिमा, और किशोरी जी के रूप का वर्णन नहीं लिखा जा सकता. वेद भी जिन्हें 'नेति, नेति' कहकर पीछे हट जाते हैं, उनके विषय भला हम तुच्छ मानव क्या लिखें. 'नेति' का अर्थ होता है 'न इतिः सः नेति' अर्थार्थ जिसका कोई अंत नहीं है वह हैं मेरी राधे जू. बंधुओ, मेरी प्यारी का रूप तो ऐसा है कि जब वो बिना परदे के घर से बाहर निकले, तो चंद भी शर्मा के बादलों के पीछे छुप जाता है. उनकी महिमा इतनी विशाल है कि स्वयं ठाकुर भी सेवा कुञ्ज में उनके चरण दबाते हैं. आप सब जानते हैं कि हमारे वृन्दावन धाम की क्या महिमा है, तो ज़रा सोचो जिन्होंने वृन्दावन को अपनी राजधानी बनाया है उनकी महिमा क्या होगी. ब्रज मंडल कि लता-पता, वह के मोर-बन्दर और यहाँ तक की यमुना जी भी राधे नाम का ही जाप करती हैं 
ब्रज मंडल के कण कण में, प्यार बसी तेरी ठकुराई 
कालिंदी की लहर लहर ने, बस तेरी महिमा गाई 

और आप ब्रज के किसी भी मंदिर में जाके देख लो, भक्त जान आपको राधे नाम की मस्ती में ही झूमते हुए मिलेंगे, इतना नशा तो किसी मैखाने में नहीं होता जितना नशा हमारे वृन्दावन के मंदिरों में है. लोग नज़रों से पीते है वहाँ पर और उनके सिर पर नशा भी ऐसा होता है जो किसी भी प्रयास से उतरने वाला नहीं है. अंगूरी शराब पीने वाला तो अपनी जेब का ख्याल करते हुए कुछ देर बाद पीना छोड़ देगा पर ये राधा नाम का जाम ऐसा है प्रेमी भक्तजनों कि इसके सामने कोई अपनी जेब का ख्याल नहीं करता, यहाँ तो जान भी गिरवी रख देते हैं, बस कोई राधे नाम कि मस्ती पीला दे
न गुलफाम चाहिए, न सलाम चाहिए
न मुबारक का कोई पैगाम चाहिए
जिसको पीकर होश उड़ जाएँ मेरे
मुझे राधे नाम का ऐसा जाम चाहिए 

इसी कारण से मै यह लेख लिखते हुए घबरा रहा था, मै शुरुआत की किशोरी जी के रूप से और उनके नाम पर पहुँच गया. द्वापर में एक बार सूर्य ग्रहण का पर्व पड़ा और भगवान कृष्ण अपनी सभी रानियों-पटरानियों के साथ द्वारिका से कुरुक्षेत्र पधारे थे और इधर ब्रज से सभी ब्रजवासी भी उसी समय कुरुक्षेत्र स्नान करने आये और साथ में राधा रानी भी आई थीं. रुक्मणि आदि रानियों का बहुत पहले से ही मन था कि वो किशोरी जी के दर्शन करें और आज इतना अच्छा अवसर अपने सामने देख उनसे रुका न गया. वो किशोरी जी के निवास स्थान के पास जाके खड़ी हो गयीं और प्रतीक्षा करने लगी कि कब राधे जू बाहर निकलेगी. उसी वक्त एक परम सुन्दरी अंदर से आई और उसके मुख पर करोड़ों सूर्यों का तेज था और लाखों चन्द्रमा की शीतलता. सभी रानिया उनके चरणों में गिर पड़ी तो उस स्त्री ने उन्हें उठाया और इस सम्मान का कारण पूछा. तो रुक्मणि जी ने बताया कि हम सब आपके प्रेमी कृष्ण की रानियाँ हैं और उन्होंने हमारे समक्ष आपकी और आपके रूप की बहुत तारीफ की थी पर हमें लगता है कि स्वामी ने जो भी कहा था कम ही कहा था, आपकी महिमा तो उससे बहुत अधिक है जितना हमें बताया गया. तो आप यकीं नहीं करोगे कि उस स्त्री ने क्या जवाब दिया, वो स्त्री बोली कि आप लोग मुझे गलत समझ रहे हो, मै राधा नहीं हूँ मै तो राधा की दासी की भी दासी हूँ. ज़रा सोचिये जिनकी दासी कि भी दासी का रूप ऐसा है तो उन किशोरी जी का रूप कैसा होगा. 

श्रीमद भागवत जैसे विशाल ग्रन्थ में कहीं भी हमारी राधे का नाम नहीं है. मै इस तथ्य के कारण में तो नहीं जाऊँगा पर आपको इतना ज़रूर बता दूँ की भागवत में भले ही राधे जू का नाम न हो पर ये ग्रन्थ केवल राधा नाम पर ही टिका है. मुझे बहुत लोग ऐसे मिले जो इस बात को अन्यथा अर्थ से समझते हैं. जब लोग ये बात सुनते हैं की भागवत में राधे जू का नाम नहीं है तो बहुत गलत विचार उनके मन में आ जाते हैं. मुझे खुद ऐसे कुछ लोग मिले जो उनपर शक करने लगे थे और उन्होंने कुछ एसी बात मुझे बोली जिसका ज़िक्र मुझे करते हुए भी शर्म आती है. तो मै आप सब से विनती करूँगा कि आप कोई भी ऐसा विचार अपने हृदय में न लाये क्योंकि जू ये सोचते हैं कि हमें राधा से क्या मतलब हम तो कृष्ण को अपना बनायेंगे तो ये बात भी समझ लो की बिना श्री जी की कृपा के, बांके बिहारी का मिल पाना असंभव है. इसलिए बिना किसी शंका के मेरी किशोरी का नाम गाओ क्योंकि कलिकाल में भगवान तक पहुँचने का एक मात्र साधन नाम है. 
मेरी राधे के चरणों में यदि तेरा प्यार हो जाता
तो इस भव से तेरा भी बेड़ा पार हो जाता
पकड़ लेता चरण गर तू मेरी राधा राणी के
तो पागल तुझे मेरे श्याम का दीदार हो जाता

अब ज़रा मुख्य बात पर आते हैं, जिनकी बहुत अल्प चर्चा मैंने अभी की, वो राधा राणी इस धरती पे प्रकट कब हुई. भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को तो मेरे बांके बिहारी आये थे और उनके पांच वर्ष पूर्व, भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी को गोकुल के निकट रावल गाँव में वृषभानु के यहाँ किशोरी जी का जन्म हुआ और इस पवित्र दिवस को राधाष्टमी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष राधाष्टमी का पर्व २३ सितम्बर को बरसाने में बड़े धूम धाम के साथ मनाया जायेगा, जिनको किशोरी जी अपने धाम में बुलाएँ वो तो परम सौभाग्यशाली होंगे ही पर यदि आप बरसाना न भी जा पो तो अपने घर पे ही किशोरी जी को 'हैप्पी बर्थडे' ज़रूर बोलना. 

केवल किशोरी जी का ही नहीं, हमारे अन्य रसिक नृपति परम श्रधेय स्वामी श्री हरिदास जी महाराज का प्रादुर्भाव भी इसी दिन हुआ था. इसलिए हमारे वृन्दावन में हरिदास जी का बधाई उत्सव मनाया जाता है. लगभग एक सप्ताह पूर्व ही बधाई उत्सव प्रारंभ हो जाता है और राधाष्टमी के दिन संध्या काल में श्री बिहारी जी कि सवारी निधिवन राज पधारती है और गोस्वामी वर्ग, समाज गायन करते हुए चाव की सवारी के साथ हरिदास जी महाराज को बधाई देने के लिए आते है. इस दिन वृन्दावन में कई सांकृतिक कार्यकर्म औ स्पर्धाओं का आयोजन होता है. हमारे पूज्य गुरुदेव के सानिध्य में भी श्री राधा स्नेह बिहारी मंदिर में कला रत्न सम्मान का आयोजन होता है जिसमे बहुत से कलाकार भाग लेते हैं और अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. 

मन तो यही है कि अपनी कलम को राधे जू और हरिदास जी की प्रशंसा में इसी प्रकार चलता रहूँ पर मुझे इस लेख कि मर्यादा और आपकी सहन-शक्ति दोनों का ही ख्याल रखना है, मै जानता हूँ आप सब इससे अधिक मेरे शब्दों को नहीं झेल पाएंगे. इसलिए अंत में मै आप सबकी तरफ से राधे जू और स्वामी जी को जन्मदिन कि बधाई देना चाहता हूँ और उनसे यह विनती करना चाहता हूँ कि अपनी करुणामयी नज़र इसी प्रकार बनाये रखें. 

बांकी रसिक बिहारिणी राधे
बांके रसिक बिहारी
बांका मुकुट चन्द्रिका बांकी,
बांकी चितवन प्यारी
बांकी चाल चारु मति चंचल
पग नुपुर झनकारी
सरस माधुरी बांकी झांकी
ये तो जीवन प्राण हमारी 

श्री राधे~~राह दे~~श्री हरिदास~~राह दे~~श्री राधे 

Saturday, September 8, 2012

चातुर्मास : व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के चार महीने

सभी भक्तों को मेरी ओर से जय श्री राधे. अपने पिछले लेख में मैंने आप सबको पुरुषोत्तम मास के विषय में जानकारी देने का प्रयास किया था और आज मै चातुर्मास के विषय में कुछ लिखना चाहता हूँ. 

चातुर्मास ४ महीने कि अवधि है जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनाया जाता है. इस अवधि में ज्ञानयोगी, कर्मयोगी और प्रेमी भक्तजन सभी कुछ नियमों का पालन करते हैं और अपनी श्रद्धानुसार उपवास भी रखते हैं. इस दौरान फर्श पर सोना बहुत शुभ माना जाता है. मौन व्रत धारण करना और अपना अधिकतम समय श्री हरी विष्णु की सेवा में व्यतीत करना भी बहुत फलदायी होता है. हमारे शास्त्रों के अनुसार भगवान चातुर्मास में योग निद्रा में विश्राम करते हैं. अतः इस अवधि में सभी शुभ कर्म जैसे विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि निषेध माने जाते हैं. 

पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है:
एक बार असुरराज विरोचन के पुत्र बाली ने अश्वमेघ यज्ञ करके बहुत पुण्य अर्जित कर लिया और सभी दैत्य देवताओं से उच्च श्रेणी में पहुच गए  और इन्द्र से उनका सिंघासन छीन लिया गया. इन्द्र सभी देवताओं सही भगवन नारायण की शरण में गए और भक्तवत्सल भगवान ने उन्हें वचन दिया कि कि वो उनकी सहायता करेंगे. प्रभु ने एक छोटे से बालक का वामन अवतार धारण किया और साथ में शिवजी ने भी बाल रूप धरा और बटुक भैरव के नाम से विख्यात हुए. वामन भगवान राजा बलि के द्वार पर पहुंचे और उनसे तीन पग भूमि का दान माँगा. यह कथा हम सबने पूज्य गुरुदेव के श्री मुख से सुनी है. तो भगवान ने अपना तीसरा चरण राजा बलि के सिर पे रखा तो उसे नर्क में प्रभु ने धकेल दिया और पाताल लोक का राज्य भी दे दिया. बलि की सच्चाई से प्रसन्न होकर वामन भगवान ने उसे एक वर मांगने को कहा तो राजा बलि ने ठाकुर जी से यह विनती की कि वो माँ लक्ष्मी सहित उनके साथ साल के तीसरे हिस्से के लिए रहें अर्थार्थ प्रभु को अपनी वामंगिनी सहित एक तिहाई साल के लिए (४ महीने) राजा बलि के साथ रहना था. प्रभु ने उसकी मनोकामना पूर्ण की और इसी चातुर्मास में प्रभु राजा बलि के साथ पाताल लोक में निवास करते हैं. इसलिए चातुर्मास के प्रारंभ को देवशयनी एकादशी कहा जाता है और अंत को देवोत्थान एकादशी. 

शास्त्रों में चातुर्मास व्रत के लिए कोई नियम आदि नहीं बताये गए हैं, यह तो श्रद्धालु की अपनी श्रद्धा है कि वो किस प्रकार अपने इष्ट को रिझाना चाहता है परन्तु कुछ भक्त बहुत कठिन नियमों के साथ इस व्रत का पालन करते हैं. कुछ नियम मै नीचे बताने का प्रयास कर रहा हूँ. 
सूर्योदय से पहले उठना, ब्रह्म बेला में स्नान और तत्पश्चात भगवान की पूजा. इस व्रत में दूध, शक्कर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, मास और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता. कुछ भक्त अलग अलग महीनो में अलग अलग नियमों से व्रत रखते हैं. 

श्रावण : पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि 
भाद्रपद : दही 
अश्विन : दूध
कार्तिक : प्याज, लहसुन और उरद की दाल


चातुर्मास में परभी कि कथा सुनने का विशेष महत्व है. इसलिए मेरा आग्रह है कि आप सब अध्यात्म चैनल के माध्यम से पूज्य गुरुदेव के श्रीमुख से कथा का अमृत पान ज़रूर करें और अपने जीवन को धन धन्य बनाकर कृतार्थ करें. जो नियम मैंने ऊपर बताये, उनका पालन करना एक गृहस्थ के लिए कठिन होता है. इसलिए हम अपनी सहूलियत के अनुसार कोई भी एक नियम मानकर व्रत रख सकते हैं. कुछ नियम और उनके फल मैं नीचे लिख रहा हूँ. 

  1. नमक का परहेज़ : हमारी आवाज़ को मधुरता प्रदान करता है
  2. तेल से परहेज़ : लंबी उम्र 
  3. कच्चे फल और सब्जियों से परहेज़ : शुद्धता प्रदान करता है
  4. सुपारी से परहेज़ : खुशहाली प्रदान करता है 
  5. दूध या दूध से निर्मित पदार्थों से परहेज़ : शांति प्रदान करता है
  6. शहद से परहेज़ : जीवन में चमक प्रदान करता है
  7. मदिरा से परहेज़ : अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है
  8. गरम भोजन से परहेज़ : हमारी संतान को दीर्घायु बनाता है
  9. फर्श पर विश्राम : भगवान विष्णु कि कृपा प्रदान करता है
  10. मासाहार से परहेज़ : योगिओं और मुनियों की गति प्रदान करता है
  11. दिन में केवल एक बार भोजन : अग्निहोत्र के परिणाम प्रदान करता है
  12. केवल दोपहर का भोजन : देवलोक में प्रवेश प्रदान करता है
  13. केवल रात्रि में भोजन : तीर्थ यात्रा का आनंद प्रदान करता है
  14. प्रभु के चरण कमल का स्पर्श : उन्नति प्रदान करता है
  15. प्रभु के मंदिर की सफाई : अच्छा घर प्रदान करता है
  16. मंदिर की परिक्रमा : मोक्ष प्रदान करता है
  17. मंदिर में गायन : गन्धर्वलोक में प्रवेश प्रदान करता है
  18. शास्त्रों का अध्यन : विष्णुलोक में प्रवेश प्रदान करता है
  19. मंदिर में जल का छिडकाव : अप्सरालोक में प्रवेश प्रदान करता है
  20. विष्णु जी कि पूजा : वैकुंठ में निवास प्रदान करता है
  21. फर्श पर बिना बर्तन के भोजन करना : शक्ति प्रदान करता है
  22. रोजाना स्नान : स्वर्ग प्रदान करता है
  23. कोई अपशब्द न कहना : समाज में उच्च स्थान प्रदान करता है
आशा करता हूँ आप सबको इस लेख के माध्यम से कुछ नयी जानकारी प्राप्त हुई होगी. यदि आपको मेरे लिखने में कोई त्रुटी महसूस होती है तो आपके सुझाव आमंत्रित हैं. मुझे बेहद खुशी होगी यदि आप मुझे मेरी गलतियों को सुधारने का मौका दें. अगले लेख में एक बार फ़िर मै आपके साथ रूबरू होऊंगा भगवन श्री कृष्ण और राधा राणी की एक मनमोहक लीला के साथ. 

जय श्री राधे 

Monday, August 20, 2012

पुरुषोत्तम मास

सांवल-गौर सरकार के युगल चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम, गुरु जी को सस्नेह वंदन और आप सब भक्तों को भी मेरी ओर से प्यार भरी राधे राधे. ठाकुर जी कि प्रेरणा से आज एक बार फ़िर अपनी कलम से कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हूँ और आपको पुरुषोत्तम मास के विषय में कुछ बताना चाहूँगा. हम सबने श्रीमद्भागवत को पढ़ा या सुना ज़रूर है. इस परम ग्रन्थ के छटे स्कंध में १५ अध्याय हैं जीने में प्रथम के पांच अध्यायों में हिरण्यकश्यप की कथा है, मध्य के पांच अध्यायों में भक्त प्रहलाद का चरित्र आया है और अंतिम पांच अध्यायों को कर्म पंचाध्यायी कहा जाता है. हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी का कठोर तप करके कुछ ऐसे वरदान हासिल कर लिए, जिससे उसकी मृत्यु लगभग नामुमकिन हो गयी. उसका आतंक बहुत अधिक फ़ैल गया. उस राक्षस ने ब्रह्मा जी से एक वरदान ये भी माँगा था कि में साल के बारह महीनो में से किसी भी महीने में ना मरुँ. जब भगवान नरसिंह उस दुष्ट का संहार करने पधारे थे, तो उन्होंने उसे कहा था कि मै तुझे साल के १२ महीनो में नहीं मार सकता, इसलिए तेरे लिए मै एक तेरहवा महीना बनाता हूँ, पुरुषोत्तम मास. 

शनिवार १८ अगस्त से यह पवित्र पुरुषोत्तम मास प्रारंभ हो चुका है और इस वर्ष हमें इसका सानिध्य भाद्रपद के महीने में मिला है. यह बहुत ही उल्लास की बात है क्यूंकि श्रावण और भाद्रपद सबसे खुशहाल महीने माने जाते हैं और उनमे यदि पुरुषोत्तम मास भी मिल जाये तो कहने ही क्या. शुद्ध भाद्रपद के कृष्ण पक्ष के उपरान्त अब अधिक मास का शुक्ल पक्ष चल रहा है, फ़िर अधिक भाद्रपद का कृष्ण पक्ष और तत्पश्चात शुद्ध भाद्रपद का शुक्ल पक्ष आयेगा. पुरुषोत्तम मास केवल ऐसा महीना है जिसका शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष से पूर्व आता है. ये मास हर तीसरे साल में आता है और विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है. उदहारण के लिए: मल मास, अधिमास, मलिमलुच, संसारपा और अहम्सपति मास. इस महीने में कोई सूर्य-संक्रांति नहीं होती. हमारी संस्कृति में इस महीने का विशेष महत्व है और केवल संस्कृति ही नहीं, विज्ञान की दृष्टि से भी यह महीना बहुत आवश्यक है. हाम मानते हैं कि पृथ्वी ३६५ दिनों में सूर्य के इर्द गिर्द आपना एक चक्कर पूरा करती है, परन्तु यदि बारीकी से देखे तो यह अवधि कुछ घंटे कम होती है और उसको पूरा करने के लिए ही अधिक मास हमारे कैलेंडर से जोड़ा गया. 

इस महीने में शादी, गृह-प्रवेश, मुंडन इत्यादि शुभ कार्य निषेध होते हैं परन्तु धार्मिक अनुष्ठान जैसे हवन, भगवत महायज्ञ, दान आदि बहुत फलदायक होते हैं. जो शुद्ध ह्रदय से और पूर्ण भक्ति भाव से यह कार्य करता है, उसे अपनी पूजा-अर्चना का विशेष लाभ प्राप्त होता है. इस अधिक मास का वर्णन ऋग्वेद, अथर्ववेद, भागवत पुराण एवं और भी कई प्रामाणिक ग्रंथो में आया है. भागवत जी में लिखा है कि जो भक्त किसी धार्मिक नदी या कुंद में स्नान इस महीने में करता है, उसके सारे संताप प्रभु खुद हर लेते हैं. धन और शांति पाने के लिए इस महीने में श्रीमद्भागवतगीता  का पथ करना चाहिए और प्रभु श्री कृष्ण और श्री हरी विष्णु के कथाओं को पढ़ना या सुनना चाहिए. हमें फर्श पर सोना चाहिए, दिन में एक बार भोजन लेना चाहिए और किसी भी प्रकार की पितृ-पूजा या तर्पण नहीं करना चाहिए. 

कथा कुछ ऐसी भी पढ़ने को मिलती है कि एक बार यह अधिक मास क्षीर सागर में नारायण भगवान से मिलने गया और उनसे विनती करने लगा कि मुझे भी एक देवता दो. जैसे हर मास का, हर नक्षत्र का, और हर दिन का एक देवता होता है, ऐसे अधिक मास का कोई देवता नहीं था. तो उसकी करूँ पुकार पर मेरी दयालु सरकार ने उसे अपना ही एक नाम दे दिया, 'पुरुषोत्तम' और वो स्वयं इस अधिक मास के देवता बन गए. हमारी उन्ही के चरणों में यह विनती है कि वो हर जगह खुशी बनाये रखें और अपने भक्तों पर कोई विपदा न आने दे. 


  

Wednesday, August 8, 2012

श्री कृष्ण जन्माष्टमी


हर शाम चरागों से जला रखी है
बात ये दुनिया से छुपा रखी है
न जाने किस गली से आजाओ तुम
इसलिए हर गली फूलों से सजा रखी है



जब इस पृथ्वी पर पाप और अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया तो माँ धरती ने सभी देवताओं के साथ मिलकर नारायण के समक्ष अपनी व्यथा गाई और श्री हरी विष्णु ने उन सबको यह आश्वासन दिया कि वो बहुत जल्द कृष्ण अवतार धारण करके पृथ्वी पर आएंगे. सुंदर भाद्रपद का महीना और कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, अभिजित मुहूर्त और रोहिणी नक्षत्र का तीसरा चरण, बादलों की गडगडाहट और मंद मंद पवन मानो प्रभु का स्वागत कर रहे हों और सभी देवताओं ने प्रभु की गर्भ स्तुति की जब उन्होंने मथुरा में, कंस के कारागार में, माँ देवकी के गर्भ से चतुर्भुज रूप से अवतार लिया. यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि प्रभु ने अवतार लिया, उन्होंने जन्म नहीं लिया क्यूंकि प्रभु तो अजर अमर हैं. उन्होंने गीता जी में अर्जुन को उपदेश देते समय यह बताया है कि वो न तो जन्म लेते हैं और न ही मरते है, वो तो हर पल, हर क्षण, इस प्रकृति और इस ब्रह्माण्ड के कण कण में व्याप्त हैं. पुष्पों में सुगंध के माध्यम से, हवा में शीतलता के माध्यम से, धूप में तपिश के माध्यम से, चाँद में चांदनी के माध्यम से, सूर्य में प्रकाश के माध्यम से, खेतों में लह्लाहट के माध्यम से और सभी जीवों के आत्मा के माध्यम से प्रभु विराजते हैं. जैसा कि श्री राम चरित मानस में शिव जी बताते हैं, 

हरी व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रगट भये मै जाना

तो सवाल यह सामने आता है कि यदि प्रभु सर्व व्यापक हैं तो उन्हें तरह तरह के शरीर धारण करने की क्या आवश्यकता है. कई लोग इस बात का उत्तर ये देते हैं कि प्रभु असुरों के विनाश के लिए आते हैं. परन्तु यह बात सत्य नहीं है बंधुओ. क्यूंकि हमारे प्रभु तो इतने महान हैं कि यदि उनकी एक भृकुटी टेड़ी हो जाए तो काल स्वयं थर थर कांपने लगता है तो क्या वो प्रभु अपने लोक में बैठे बैठे मुठ्ठी भर असुरों का विनाश नहीं कर सकते ? इस सवाल का असली उत्तर भी भोले नाथ ने उपर्लिखित चौपाई में ही दिया है. शिव जी कहते हैं कि 'प्रेम ते प्रगट भये मै जाना'. अर्थार्थ प्रभु को प्रेम से जहाँ पुकारा जाये वो वहीँ अपने भक्तों के सामने प्रकट हो जाते हैं. इसलिए अपने भक्तों के साथ सुंदर सुंदर लीला करने के लिए, अपने बाल रूप का आनंद देने के लिए, अपने प्रेमियों का प्यार पाने के लिए ही प्रभु वृन्दावन में पधारे थे. एक प्रसंग मुझे स्मरण हुआ, इस लेख की सीमाओ को तोड़ के तो मै उस प्रसंग का वर्णन नहीं कर सकता, परन्तु फ़िर भी सांकेतिक तौर पे मै उस प्रसंग कि चर्चा करना चाहता हूँ. एक संत निर्गुण के बहुत बड़े उपासक थे. हमेशा कहा करते थे "घट में गंगा, घट में यमुना", क्या फायदा है मूर्ति कि पूजा करके या सगुण की उपासना करके, प्रभु सब जगह हैं इसलिए भगवान को एक निराकार तेज मानो. जब एक गाँव के लोगों ने यह बात सुनी तो बहुत बुरा लगा कि हमें ठाकुर जी के विग्रह को देखने से रोकता है यह संत. तो एक गाँव के व्यक्ति ने धोके से उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया और जब संत चिल्लाने लगे प्यास से, तो उस व्यक्ति ने कहा कि ऊपर दो घड़े रखे हैं, उन्ही में गंगा यमुना है, अपनी प्यास बुझालो. तो संत ने कहा कि हाँ वो सत्य है पर उससे प्यास नहीं बुझती, तो उस व्यक्ति ने भी कह दिया कि हम भी जानते हैं कि वो निर्गुण निराकार है, पर जब तक वो सगुण बनकर हमारे सामने नहीं आता, तो हम भक्तों की प्यास नहीं बुझती. इसलिए बंधुओ, भगवान तो भक्तों की प्यास बुझाने के लिए आते हैं मोर-मुकुट धारण करके.



तो अब सब भक्तों को अपनी कमर कास लेनी चाहिए. नहीं नहीं, किसी जंग या लड़ाई की तैयारी नहीं करनी है, पर जन्माष्टमी दस्तक दे चुकी है न, इसलिए तैयार तो होना पड़ेगा, उनका जन्मदिन है, कोई छोटी बात तो है नहीं. इसलिए आइये हम यह जाने कि यह पावन त्यौहार प्रभु की भूमि श्री धाम वृन्दावन में कैसे मनाया जाता है. वैसे तो इस वर्ष बड़ी सुंदर भागवत कथा चल ही रही है, पर श्री बांके बिहारी जी के साथ इस त्यौहार को कैसे मनाया जाता है आइये पढ़ें. 

एक बहुत ही अलग ढंग से यह पर्व वृन्दावन में मनाया जाता है और पूरे वर्ष में केवल इस दिन ठाकुर जी की मंगला आरती की जाती है. पूरे दिन साधारण रूप से दर्शन होते हैं, शयन आरती के पश्चात् रात में ठाकुर जी शयन को जाते हैं और उनके जन्मोपरांत मध्यरात्रि प्रभु का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अनुपम महा अभिषेक होता है और उसके बाद लगभग दो बजे उनके दर्शन खुलते हैं. पूरे वर्ष में केवल इस दिन ठाकुर जी इस विशेष बेला में भक्तों के सामने मुस्कुराते हैं और अपने जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनकी छवि का वर्णन करना नामुमकिन है. महा अभिषेक कि सेवा दर्शनों के लिए नहीं होती और इस दौरान मंदिर के प्रांगन में श्रीमद भगवत कथा का विशेष आयोजन किया जाता है. वह दशम स्कंध के अंतर्गत कृष्ण जन्म कथा का पाठ किया जाता है. फ़िर लगभग ३:३० पे उनकी मंगला आरती की जाती है और प्रातः छः बजे तक उनके दर्शन खुले रहते हैं. महा अभिषेक का चरणामृत प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है और प्रभु के जन्मदिन के उपलक्ष्य में दूध, नारियल और मेवा से निर्मित स्वादिष्ट पकवान भोग लगाकर भक्तों को दिए जाते हैं. इस दिन ठाकुर जी अपने कक्ष को छोड़ कर जगमोहन में आ जाते हैं और वहां स्वर्ण रजत के न्यारे सिंहासन पर विराजते हैं और रात भर अपनी टेढ़ी नज़रों के तीर से दीवानों को घायल करते हैं.

नशीली आँखों से जब वो हमें देखते हैं
हम घबराकर आँखे झुका लेते हैं
कौन मिलाये उन आँखों से आंखे
सुना है वो नज़रों से दिल चुरा लेते हैं

जन्माष्टमी के एक दिन पश्चात्, अर्थार्थ नवमी तिथि को वृन्दावन में नंदोत्सव मनाया जाता  है. मंदिर के गोस्वामी दर्शन करने आये भक्तों को मिठाई, फल, खिलोने, बर्तन, कपड़े इत्यादि बांटे जाते हैं. मंदिर में भक्तजन नन्द बाबा को बधाई देने के लिए भजन गाते हैं और लाला के जन्म कि खुशी में मस्ती से झूमते हैं. मंदिर में सब इतने मस्त होते हैं और सबको केवल अपनी ही आवाज़ सुनाई देती है, कोई किसी कि बात नहीं सुन सकता, बस सबका तार ठाकुर जी के श्री विग्रह से जुड़ा होता है. हर श्रधालु अपने ढंग से मज़े लूट रहा होता है, कोई गाता है, कोई नाचता है, कोई वंदन करता है, कोई प्रसाद उछालता है तो कोई उन्हें प्रसाद के रूप में बटोर लेता है. ऐसा लगता है मनो बहुत सारे पागलों की टोली मंदिर में झूम रही हो. और यह बात कोई मिथ्या नहीं है, वाहन सब पागल ही होते हैं और वृन्दावन में तो बुद्धि का काम ही नहीं होता. वाहन तो सब राधा नाम कि शराब ठाकुर जी कि नज़रों से पीते हैं और उस नशे में सब दुनिया को भूल कर मस्त हो जाते हैं. दोपहर को राज भोग आरती तक यह उत्सव मनाया जाता है.

जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर हमारी बाल कृष्ण के श्री चरणों में यह प्रार्थना है कि आप सबके जीवन में खुशहाली सदा बनी रहे और ठाकुर जी आपको अपनी मुस्कान से इसी प्रकार लुभाते रहें. आपका प्यार श्री जी के चरणों और अधिक विकसित हो और गुरूजी के आशीर्वाद का साया आपके सिर पे हमेशा बना रहे. इस पर्व पर हमारा उनसे यही विनम्र निवेदन है:

ब्रज धूलि प्राणों से प्यारी लगे
ब्रज मंडल में ही बसाये रहो
रसिकों के सुसंग में ही मस्त रहूँ
जग जाल से नाथ बचाए रहो
नित बांकी झांकी निहारा करूँ
छवि झांक से नाथ बचाए रहो
अहो! बांके बिहारी यही विनती
मेरे नैनो से नैना मिलाये रहो




वृन्दावन धाम में आनंद भयो रे
यशोदा माँ को लाल कृष्ण चंद भयो रे


आप सबको और आपके परिवार को हमारी ओर से और पूज्य गुरुदेव की ओर से जन्माष्टमी कि बहुत बहुत बधाई. 

एक बार जोर से कहिये
~~~~~ राधे ~~~~~बधाई हो ~~~~~ राधे ~~~~~





Thursday, July 26, 2012

आगामी कार्यक्रम


परम पूज्य श्रद्धेय आ० गो० श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज 

हम सबको इस बात का ज्ञान है कि हमारे पूज्य गुरुदेव की आवाज़ और उनकी कथा न केवल भारत में अपितु सात समंदर पार विदेशों में भी भक्तो का मार्गदर्शन करती है और उनको परम शांति का अनुभव कराती है. उनके कठिन परिश्रम के द्वारा और प्रभु श्री बांके बिहारी जी की कृपा से हमारे गुरूजी कि बुलंदिय केवल भारत की भूगौलिक सीमा में कैद नहीं हैं. वे विदेशों में भी उतने ही प्रिय और पूजनीय हैं जितने कि वो अपने देश में हैं. ये केवल एक तथ्य नहीं है, मै यह बात पूरे प्रमाण के साथ कहता हूँ. राधे जू की कृपा से हमारे इस ब्लॉग को एक सप्ताह में लगभग 5000 बार देखा जाता है और इनमे से 16 प्रतिशत विदेश के भक्त हमारे विचारों को पढते हैं. हमारे ब्लॉग के आंकड़े यह दिखाते हैं कि भारत के आलावा यह ब्लॉग अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, पोलैंड, कनाडा, संयुक्त अरब राष्ट्र, नेपाल और जेर्मनी में हर सप्ताह पढ़ा जाता है जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि इन सभी देशो में गुरूजी के चाहने वाले निवास करते हैं. इसलिए हर वर्ष पूज्य गुरुदेव कुछ समय के लिए विदेश यात्रा पर जाते हैं और वहां के भक्तों को हमारे वृन्दावन की एक झलक दिखाते हैं. मुझे यह जानकार कोई आश्चर्य नहीं होता की पूज्य गुरुदेव और उनके शिष्य मिलकर अमेरिका में भी ठाकुर जी को राधा राणी के साथ प्रकट कर देते हैं. इस वर्ष पूज्य गुरुदेव 05 अगस्त से 30 सितम्बर तक अमेरिका में कथामृत का वितरण करेंगे. वहां पर आयिजित उनकी सभी कथाओं का विवरण नीचे दिया जा रहा है:

  1. 05 August to 12 August : Riverside, USA
  2. 17 August to 23 August : Toronto, Canada
  3. 25 August to 31 August : Los Angeles, USA
  4. 02 September to 08 September : Edmenton, USA
  5. 10 September to 16 September : Washington, USA
  6. 17 September to 23 September :  Houston, USA
  7. 24 September to 30 September : New Jersey, USA

विशेष कार्यक्रम


इस वर्ष जन्माष्टमी के पावन अवसर पर श्री भगवत मिशन ट्रस्ट के तत्वाधान में अष्टोत्तरशत (१०८) श्रीमद भागवत कथा का विशाल आयोजन किया जा रहा है. 

कथा व्यास : श्रद्धेय आ० श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज
कथा स्थल : ठा० श्री राधा स्नेह बिहारी मंदिर/आश्रम
दिनांक : ०७ अगस्त से १३ अगस्त
समय : सायें ०३:०० बजे से ०७:०० बजे तक 

इस कथा के चतुर्थ दिवस की कथा जन्माष्टमी के पवित्र पर्व पर सुनाई जायेगी और मध्यरात्रि को ही बालकृष्ण  का जन्म पूज्य गुरुदेव अपनी मंगलमयी वाणी से करेंगे. साथ ही इस कथा का सीधा प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर दिखाया जायेगा. सभी भक्तगण इस कथा को सुनकर अत्यंत दुर्लभ सौभाग्य का लाभ प्राप्त करें और ठाकुर जी के चरित्रों के श्रवण से अपने जीवन को कृतार्थ करें.  

Sunday, July 15, 2012

श्रावण मास

बरसाने सो उठी बदरिया, घिर गोकुल पर आई
यमुना भीगी, मधुबन भीगा, गोवर्धन पर छाई
ग्वाले भीगे, गैया भीगी, नन्द यशोमती माई
चीर भिगोये ब्रज लोगन के, कुञ्ज-कुञ्ज मुस्काई
कारी-कारी कामर ओढ़े, भीगे रसिक कन्हाई
मोर मुकुट, पीताम्बर भीगा, मुरली भी नहलाई 


हमारे शास्त्रों में भगवान ने कहा है कि मै महीनो में मार्गशीर्ष हूँ. अर्थार्थ भगवान की पूजा-अर्चना के लिए श्रेष्ठ महिमा मार्गशीर्ष है. परन्तु यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि प्रभु महीनो में मार्गशीर्ष हैं तो भक्त लोग महीने में श्रावण हैं. भक्ति और प्रेम का मौसम तो इसी श्रावण(सावन) के महीने में ही होता है. एक लंबी गर्मी के बाद बरसात का मौसम, त्योहारों का मौसम, प्यार का मौसम यह सब इसी सावन में महीने में होता है. इस महीने में तो वृन्दावन जाने का आनंद ही कुछ और होता है और ऊपर से यदि रिम-झिम पानी बरस जाये, तो कहने ही क्या. इस पूरे महीने में हमारे बांके बिहारी जी तो अद्भुत श्रृंगार करके ठाट से दर्शन देते हैं. चैत्र शुक्ल पक्ष एकादसी से हमारे वृन्दावन में ठाकुर जी के फूल बंगले सजने प्रारंभ हो जाते हैं. रोजाना शाम को प्रभु अपने कमरे से बाहर भक्तो के बीच जगमोहन में फूल बंगले में विराजते हैं. और सावन मास की अमावस्या (हरियाली अमावस्या) को ये फूल बंगले समाप्त ह्पो जाते हैं. इस वर्ष हरियाली अमावस्या वीरवर, १९ जुलाई को मनाई जायेगी. गत वर्ष मेरा यह बहुत बड़ा सौभाग्य था कि इस अमावस्या को मैंने वृन्दावन में ठाकुर जी के दर्शन किये थे. बंधुओ, फूल बंगले का वर्णन मै कैसे करू. मंदिर के पूरे प्रांगन में एसी मंद सुगंध बहती रहती है मनो हम किसी कल्पवृक्ष की छाया में खड़े हों. 

भगवान भोले नाथ की उपासना के लिए भी यह सावन का महीना सबसे उत्तम है. हम जानते है कि देश-देशांतर से श्रद्धालु हरिद्वार में एकत्र होते हैं और कांवड लाते हैं. गंगाजल का कलश भर अपने कंधो पे कांवड डाल, भक्त भोले कि मस्ती में पैदल हरिद्वार से अपने घर आते हैं. उन दीवानों को न तो पैर में छाले कि चिंता होती है और न ही किसी अन्य तकलीफ की. बस बाबा उन्हें हाथ पकड़ के खीच लेते हैं. शिव रात्रि की पवित्र बेला में यह जल शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है और उसके पश्चात् ही कांवड का व्रत पूरा होता है. इस वर्ष शिव रात्रि मंगलवार, १७ जुलाई को मनाई जायेगी. भगवान शिव की आराधना के कुछ सिद्ध मंत्र यहाँ दिए जा रहे हैं


कर्पूर गौरं करुनाव्तारम संसारसारं भुजगेन्द्र हारं
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि

देवदेव महादेव्नील्कंठ नमोस्तुऽते
कर्तुमिच्छाम्यहम देव शिवरात्रि व्रतं तव
तव प्रभावाद्वेवेश ! निर्विघ्नेन् भावोदती
कमाद्यः शत्रवो मां वै पीड़ाम कुर्वन्तु नैव हि 

रूपं देहि यशो देहि भोगं देहि च शंकर
भक्तिमुक्तिफलम देहि ग्रिहित्वार्घ्यम नमोस्तुऽते

दर्शनं बिल्व्पत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनं
अघोरपापसंघारम बिल्व्पत्रम शिवार्पनम

नागेन्द्रहाराए त्रिलोचनाये भास्मंग्रगाये महेश्वराए
नित्यायेशुद्धाये दिगम्बराए तस्मै न कराये नमः शिवाये


शिवरात्रि के पश्चात् फ़िर हमारे वृन्दावन का एक बहुत बड़ा त्यौहार आता है. श्रावण शुक्ल त्रितीय जिसे हरियाली तीज भी कहा जाता है. इस दिन बांके बिहारी जी के बहुत विशेष दर्शन होते हैं. हरियाली तीज के पावन पर्व पर ठाकुर जी स्वर्ण हिंडोले में विराजते हैं. अनेक कीमती धातुओ से निर्मित इस हिंडोले का दर्शन वर्ष में केवल एक बार होता है. इस दिन मंदिर को एक बाग कि तरह सजाया जाता है. हर जगह हरी-हरी लाता पता शोभा पाती हैं. ठाकुर जी भी हरी पोषक हि पहनते हैं और उनकी सारी सखिया इस दिन उनके आस पास खड़ी हो जाती हैं. 

सावन के महीने के अंत में अर्थार्थ श्रावण पूर्णिमा को भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मनाने का त्यौहार होता है जिसे कहते हैं रक्षा बंधन.

आप सब भक्तो को श्रावण मास की और उसमे आने वाले प्रत्येक त्यौहार की बहुत बहुत शुभकामना. जिस प्रकार से सावन के महीने में हर पेड़ फल-फूल जाता है, उसी प्रकार हम सबका परिवार, कारोबार, और प्रभु चरणों में प्यार फलता-फूलता रहे, ठाकुर जी के चरणों में यही मंगल कामना है और इसी प्रार्थना के साथ मै अपनी कलम को विश्राम देता हू. आप सबको जानकार खुशी होगी कि आपका मित्र अंशु गुप्ता अभी तक तो केवल लेख लिखता था, परन्तु इस बार आप सबके प्यार और विश्वास ने मुझे प्रेरित किया और मैंने सावन के महीने पर एक भजन भी ठाकुर जी को समर्पित किया है. मेरी सभी पाठकों से विनती है कि कृपया इस भजन को अपना कीमती समय दे और मुझे अपने सुझाव अवश्य लिखे. 

सावन का महीना, छाई घटा घनघोर
कदम् की डाल पे डाले, झूला झूले नन्द किशोर

ब्रज गलियन में यमुना किनारे, मोहन कांकरिया छुप-छुप के मरे
सब गोपिन की इसने, तो मटकी देई फोर
कदम कि डाल पे डाले झूला झूले नन्द किशोर              

डाट के देखो माँ ने मार के देखो, उखल ते मैया ने बांध के देखो
पर मान्यो न सांवरिया, चला न कोई जोर
कदम् की डाल पे डाले, झूला झूले नन्द किशोर

सावन की तीज आई झूले राधा प्यारी, प्यारी को झोटा देवे किशन मुरारी
हिंडोले पे देखो, कैसे मटके चित चोर
कदम् की डाल पे डाले, झूला झूले नन्द किशोर

फूलों के बंगले में विराजे है कनुआ, हंस हंस के मोह रह्यो भक्तों का मनुआ
दिल मेरा झूमे ऐसे, जैसे नाचे कोई मोर
कदम् की डाल पे डाले, झूला झूले नन्द किशोर

भव सागर में डोले दास की नैया, नैया संभालो कित खोये हो खिवैया
चरणों में अपने मोकू रखलो माखन चोर
कदम् की डाल पे डाले, झूला झूले नन्द किशोर


JAI SHRI RADHEY
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JAI BIHARI JI KI