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Sunday, November 11, 2012

कार्तिक मास, दीपावली एवं आगामी कार्यक्रम

टेढ़े टिपारे कटारे किरीट की, मांग की पाग की धारी की जय जय 
कुंडल जाए कपोलन ते, मुस्कानहू धीर प्रहारी की जय जय 
रासेश्वरी दिन रात रटूं, यही मोहन की बनवारी की जय जय 
प्रेम से बोलो जी बोलत डोलो, बोलो श्री बांके बिहारी की जय जय 



 वैसे तो पूरे दिन में एसा एक क्षण भी नहीं है जिसमे ठाकुर को वंदन न किया जा सके, ठाकुर जी की पूजा ही इस दुनिया में ऐसी है जिसके लिए कोई मुहूर्त निकलवाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, जिस समय उनका नाम हमारे मुख से निकल जाए वही समय शुभ हो जाता है। इसलिए आज इस लेख की शुरुआत मै  ठाकुर जी को प्रणाम करके ही करने जा रहा हूँ। 

हमारी वैष्णव संस्कृति में कुछ महीनो का अध्यात्म की दृष्टि से वेशेष महत्त्व होता है, उदहारणतः श्रावण, मार्गशीर्ष, फाल्गुन और कार्तिक। कार्तिक मास अति पवित्र और उल्लासपूर्ण होता है क्योंकि हिन्दुओ के सभी विशेष पर्व एवं त्यौहार इस कार्तिक मास में आते हैं। यदि मै कहूँ की कार्तिक मास अपने आप में खुद एक त्यौहार है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सर्वप्रथम कृष्ण पक्ष चतुर्थी को करवा चौथ, फिर अष्टमी को अहोई अष्टमी, त्रयोदशी को धनतेरस, चतुर्दशी को छोटी दिवाली (रूप चतुर्दशी), अमावस्या को महापर्व दीपावली, शुक्ल पक्ष प्रथम को गोवर्धन पूजा, द्वितीय को भाई दूज, अष्टमी को गोपाष्टमी, नवमी को अक्षय नवमी और एकादसी को देव प्रबोधिनी एकादसी। एक साथ इतने सारे त्यौहार अन्य किसी मास में नहीं आते। और केवल हिन्दुओ के नहीं नहीं, बल्कि हमारे सिख भाइयों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व भी कार्तिक की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है। 

हमारे वृन्दावन में दीपावली की धूम कार्तिक मास के पहले दिन से ही दीप दान के साथ शुरू हो जाती है। भक्त जन बिहारी जी के सामने घी या तेल के दिए जलाते हैं और मन में यही भाव रखते हैं कि इस दिए की तरह ही हमारा जीवन भी खुशियों से सदा रोशन रहे। पर मै यदि व्यक्तिगत तौर पे अपनी बात करूँ तो मेरा मानना कुछ अलग है। हमें उस दीये से त्याग, समभाव और बांटने की शिक्षा लेनी चाहिए। जिस प्रकार एक दीया खुद को जलाकर प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार हमें भी अपने आस पास अच्छाई की रौशनी से बुराई के अँधेरे का नाश करना चाहिए। हम दीये में जितना घी या तेल डालते हैं, वह उसे प्रकाश देने में जला देता है, हमें भी अपने धन का सदुपयोग करते हुए ज्ञान बांटना चाहिए। और अंत में जिस प्रकार दीया अपनी रौशनी देने में अमीर गरीब या जात-पात का भेद नहीं करता, हमारी दृष्टि भी इतनी ही व्यापक और सबको भगवान् के बन्दों के रूप में देखने वाली होनी चाहिए।
देहली ऊपर दीप जलना अच्छा है 
अन्धकार को दूर भगाना अच्छा है 
बाहर लाखों दीप जलें हैं जलने दो 
पर मन के भीतर दीप जलाना अच्छा है 

वृन्दावन में दीपावली के शुभ अवसर पर बांके बिहारी जी महाराज का सिंहासन बदल दिया जाता है, गर्मियों में जो सिंहासन रखा होता है, उसकी जगह अब एक विशाल हटरी आ जाती है जिसके खम्ब चांदी से निर्मित है और चांदी की ही छत भी है। इस हटरी पर मखमल के कपडे से सजावट की जाती है। ग्रीष्म काल में बिहारी जी हलके रंग के कपडे पहनते हैं पर दीपावली के साथ उनकी पोशाक में भी सर्दियों की ठण्ड की झलक मिल जाती है। साधारण तौर पे जब हम वृन्दावन जाते हैं, तो बिहारी जी का दर्शन करके हम बाकि साड़ी दुनिया को भूल जाते हैं और केवल प्रभु की आँखों में खो जाते है, पर दीपावली एक एसा पर्व है जिसकी चका चौंध में दर्शन ही करना भूल जाते हैं। अर्थार्थ दीपावली के अवसर पर मंदिर को इतने सुंदर तरीके से सजाया जाता है, वहां इतनी जगमगाहट होती है, कि भक्त बिहारी जी को नहीं उनके मंदिर को देख के ही बहार आ जाते है। पर जो भक्त उनका दर्शन करते हैं वो देखते हैं उनकी आँखों में एक शरारती चमक, एक बेमिसाल और लाजवाब मुस्कराहट जो हमेशा उनके अधरों की शोभा बनती है और एक इशारा जो उनके हर दीवाने को उनकी तरफ आकर्षित करता है, उनका श्रृंगार जिसे देख के संतों ने कितना सुंदर लिखा 
जामा बन्यो जरदारी को सुंदर, लाल है बंद और ज़र्द किनारी 
झालरदार बन्यो पटुका या में, मोतिन की छवि लगत प्यारी 
घायल करे याकी बांकी अदा, और नज़र चलावें जिगर कटारी 
भक्तन दर्शन देने के कारण, झांकी झरोखा में बांके बिहारी 

दीपावली के अगले दिन अन्नकूट या श्री गिरिराज पूजन किया जाता है। गिरिराज महारज को भोग लगाने के लिए अनेक व्यंजन और पकवान बनाये जाते है। क्योंकि गोवेर्धन नाथ का विशाल रूप है इसलिए उनका भोग भी विशाल मात्र में बनाया जाता है और दोपहर में राज भोग के बाद सभी भक्तों में बाँट दिया जाता है। हम सब जानते है की श्री गिरिराज महाराज और कोई नहीं, साक्षात् बिहारी जी का ही रूप हैं और इस बात की पुष्टि श्रीमद भागवत महापुराण में स्वयं भगवान् ने की है। 

उसके अगले दिन भाई दूज का पवित्र पर्व मनाया जाता है। एसी मान्यता है कि श्री यमुना महारानी ने अपने भाई धर्मराज (यमराज) से यह वरदान माँगा था कि जो भाई-बहन एक दुसरे का हाथ पकड़ के कार्तिक शुक्ल द्वादशी को मेरे जल में स्नान करेंगे उनको आप अपने लोक कभी नहीं ले जायेंगे और तब से यह पर्व भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा।

अलग अलग प्रान्तों में और देश के विभिन्न हिस्सों में इस पञ्च दिवसीय महापर्व को एक अनूठे ढंग से मनाया जाता है। पर एक बात जो बात हर जगह समान रहती है वह है महा लक्ष्मी का पूजन और प्रेम पूर्ण मिलन। दीपावली के दिन तो लोग लक्ष्मी-गणेश जी की अर्चना करते ही हैं, पर उससे पूर्व सब अपने मित्र, बंधुओ-बांधवों से मिलते है और उपहार, मिष्टान आदि का आदान-प्रदान होता है। सच कहूँ तो यह लेना-देना तो केवल एक बहाना है, असली मकसद तो आपसी तनाव को दूर करना और रिश्तों में मिठास घोलने का होता है, यही हमारी संस्कृति है और यही हमारी परंपरा भी है। अपनी संस्कृति के सम्मान में मेरा बहुत मन है की अपने सब पाठकों को कुछ भेंट दूं पर हम इस लायक कहाँ कि किसी को कुछ दे सकें। परन्तु हाँ इस बार हमारे पूज्य गुरुदेव ने आप सबके लिए दिवाली के तोहफे का अच्छा इंतज़ाम किया है, ख़ास तौर पर दिल्ली के भक्तों के लिए। अगले संपूर्ण मास में पूज्य गुरुदेव अपनी कथा का अमृत दिल्ली में लुटाएंगे, आपको पूरी जानकारी नीचे दिए गए आगामी कार्यक्रम की सूची से मिल जाएगी।



श्रधेय आ० गो० श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज 

16 नवम्बर से 22 नवम्बर 2012 : खीम्सार, राजस्थान 
09 दिसम्बर से 15 दिसम्बर 2012 : पीतमपुरा, दिल्ली 
17 दिसम्बर से 23 दिसम्बर 2012 : श्री कृष्णा जन्मभूमि, मथुरा 
25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2012 : देवास, इंदौर, मध्य प्रदेश 


श्रधेय आ० श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज

16 नवम्बर से 22 नवम्बर 2012 : रामलीला मैदान परिसर, मुरार, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
24 नवम्बर से 30 नवम्बर 2012 : भोपाल, मध्य प्रदेश
01 दिसम्बर से 07 दिसम्बर : पश्चिम विहार, दिल्ली
 09 दिसम्बर से 15 दिसम्बर 2012 : झारसुगुडा, ओडिशा
17 दिसम्बर से 23 दिसम्बर 2012 : शाहदरा, दिल्ली
25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2012 : कमला नगर, दिल्ली


अंत में आप सब को शुभकामनाये देकर अपने लेख को विश्राम देना चाहूँगा और आशा करूँगा की आप सबकी दीपावली और आने वाला वर्ष मंगलमय हो।