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Sunday, December 23, 2012

Upcoming Programmes

श्रधेय आचार्य गोस्वामी श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज 

विश्व के इतिहास में पहली बार 51 हज़ार कलशों द्वारा विशाल शोभा यात्रा और साथ ही भागवत रत्न पूज्य बड़े गुरुदेव द्वारा श्रीमद भागवत कथा (ज्ञान यज्ञ) का विशाल आयोजन। सामान्यतः हर शोभा यात्रा में 108 कलश होते हैं और अधिकतम तौर पर 1008 होते हैं परन्तु ये पहली बार 51 हज़ार कलश यात्रा में शामिल होंगे। 

दिनांक: 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 
समय: दोपहर 01:00 बजे से 05:00 बजे पर्यन्त 
स्थान: भोपाल रोड, देवास, मध्य प्रदेश 

आगामी कार्यक्रम 

03 जनवरी से 09 जनवरी : धनबाद, झारखण्ड 

10 जनवरी से 16 जनवरी : पीतमपुरा, दिल्ली 

19 जनवरी से 25 जनवरी : गोवर्धन, मथुरा 

26 जनवरी से 01 फरवरी : आदर्श नगर, दिल्ली 


श्रधेय आचार्य श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज 


पूज्य गुरुदेव को राधारानी की कृपा से एस सौभाग्य प्राप्त है कि वो एक वर्ष में अनेक जगह भागवत की कथा को कहते हैं और भक्तों के बीच में राधा नाम की मस्ती लुटाते हैं। अनेक जगह वो पहली बार जाते है और कोई जगह इसी होती है जहाँ वो काफी समय से निरंतर आ रहे हैं। बन्धुओ दिल्ली स्थित कमला नगर की भूमि इतनी पवित्र है की यहाँ पिछले 18 वर्षों से निरंतर और नियमित रूप से गुरूजी कथा कर रहे हैं और मुझे यह कहते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि इस बार उन्नीसवी कथा का भी विशाल आयोजन यहाँ संपन्न होगा। यह मेरा सौभाग्य है कि कमला नगर मेरा जन्म स्थान और निवास स्थान भी है। 

दिनांक: 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर, 2012
समय: दोपहर 03:00 बजे से 07:00 बजे पर्यन्त 
स्थान: श्री मधुबन वाटिका, बिरला स्कूल, कमला नगर, दिल्ली 

इस वर्ष इस कथा में मानव सेवा हेतु 27 दिसम्बर, 2012 को रक्त दान शिविर का भी आयोजन किया गया है।

आगामी कार्यक्रम 

03 जनवरी से 10 जनवरी : इस्कॉन हाउस, कोल्कता 

12 जनवरी से 18 जनवरी : लेक टाउन, कोल्कता 

31 जनवरी से 06 फरवरी : शालीमार बाग, दिल्ली   

Saturday, December 8, 2012

लील्ये की लीला

आप सब भक्तों को सादर प्रणाम करके इस लेख का प्रारंभ करने जा रहा हूँ और आज आपको एक ऐसी अद्भुत लीला का वर्णन करूँगा जिसे पढ़कर आपके ह्रदय में रोमांच और प्रेम प्रफुल्लित हो जायेगा। आज के इस मॉडर्न ज़माने में एक चीज़ जो बहुत प्रचलित है वह है अपने शरीर के अंग पर चित्रकारी जिसे हम सब टैटू के नाम से जानते है। वास्तविकता में यह एक कला है जिसका उपयोग आज बहुत ही गलत ढंग से किया जा रहा है। पहले हमारी माताएं बहने अपने पति का नाम अपने हाथों पर गुद्वाती थीं। इसके दो प्रमुख कारण थे, सर्व्प्रथान तो इससे हमेशा अपने प्राण-प्रियतम का स्मरण बना रहता है और जैसा पहले स्त्रियाँ अपने पति का नाम नहीं लिया करी थीं, तो यदि कहीं उनका नाम बोलना पड़े तो वे अपना हाथ दिखा देती थीं। पर आज तो लोग इसे अपने शरीर का श्रृंगार समझते हैं। ऐसी ऐसी तसवीरें अपने हाथों पर बनवा लेते हैं कि क्या कहूँ। मैंने एक बार देखा एक भले मानुष ने कंकाल की खोपड़ी अपनी बाजुओं पर बनवा राखी थी और नीचे लिखा था "खतरा", वो खुद ही अपनी हकीकत ज़माने को बता रहा था। पर नहीं, यह कला भारत की धरोहर है जिसे आज पाश्चात्य संस्कृति कुछ अलग ही रूप देकर दुनिया को सिखा रही है। लेख पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए मै आप सबको बता देना चाहता हूँ कि प्राचीन समय में इस टैटू को "लील्या" कहा जाता था। इसी लील्ये से जुडी हमारे लीलाधर वंशीधर आनंदकंद वृन्दावन बिहारी श्री कृष्ण की एक अत्यंत मधुर लीला है जिसका वर्णन अभी करने जा रहा हूँ। 

एक समय की बात है, जब किशोरी जी को यह पता चला कि कृष्ण पूरे गोकुल में माखन चोर कहलाता है तो उन्हें बहुत बुरा लगा उन्होंने कृष्ण को चोरी छोड़ देने का बहुत आग्रह किया पर जब ठाकुर अपनी माँ की नहीं सुनते तो अपनी प्रियतमा की कहा से सुनते। उन्होंने माखन चोरी की अपनी लीला को उसी प्रकार जारी रखा। एक दिन राधा रानी ठाकुर को सबक सिखाने के लिए उनसे रूठ कर बैठ गयी। अनेक दिन बीत गए पर वो कृष्ण से मिलने नहीं आई। जब कृष्णा उन्हें मानाने गया तो वहां भी उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। तो अपनी राधा को मानाने के लिए इस लीलाधर को एक लीला सूझी। ब्रज में लील्या गोदने वाली स्त्री को लालिहारण कहा जाता है। तो कृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में घूमने लगे। जब वो बरसाने की ऊंची अटरिया के नीचे आये तो आवाज़ देने लगे:

मै दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी 
दीदार की मई प्यासी हूँ मुझे दर्शन दो वृषभानु दुलारी 
हाथ जोड़ विनती करूँ, अर्ज ये मान लो हमारी 
आपकी गलिन में गुहार करूँ, लील्या गुदवा लो प्यारी 

जब किशोरी जी ने यह करूँ पुकार सुनी तो तुरंत विशाखा सखी को भेजा और उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा। घूंघट में अपने मुह को छिपाते हुए कृष्ण किशोरी जी के सामने पहुंचे और उनका हाथ पकड़ कर बोले कि कहो सुकुमारी तुम्हारे हाथ पे किसका नाम लिखूं। तो किशोरी जी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्री अंग पर लील्या गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरी जी बता रही हैं:

माथे पे मदन मोहन, पलकों पे पीताम्बर धारी 
नासिका पे नटवर, कपोलों पे कृष्ण मुरारी 
अधरों पे अच्युत, गर्दन पे गोवर्धन धारी 
कानो में केशव और भृकुटी पे भुजा चार धारी 

छाती पे चालिया, और कमर पे कन्हैया 
जंघाओं पे जनार्दन, उदर पे ऊखल बंधैया 
गुदाओं पर ग्वाल, नाभि पे नाग नथैया 
बाहों पे लिख बनवारी, हथेली पे हलधर के भैया 

नखों पे लिख नारायण, पैरों पे जग पालनहारी 
चरणों में चोर माखन का, मन में मोर मुकुट धारी 
नैनो में तू गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी 
और रोम रोम पे मेरे लिखदे, रसिया रणछोर वो रास बिहारी 


जब ठाकुर जी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पे मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो ख़ुशी से बौरा गए प्रभु। उन्हें अपनी सुध न रही, वो भूल गए कि वो एक लालिहारण के वेश में बरसाने के महल में राधा के सामने ही बैठे हैं। वो खड़े होकर जोर जोर से नाचने लगे और उछलने लगे। उनके इस व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ की इस लालिहारण को क्या हो गया। और तभी उनका घूंघट गिर गया और ललिता सखी ने उनकी सांवरी सूरत का दर्शन हो गया और वो जोर से बोल उठी कि ये तो वही बांके बिहारी ही है। अपने प्रेम के इज़हार पर किशोरी जी बहुत लज्जित हो गयी और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था। उधर ठाकुर भी किशोरी का अपने प्रति अपार प्रेम जानकार गद्गद हो गए। 

तो ये थी उस पवित्र लील्ये की पवन लीला। हम आशा करते हैं कि आपको इस लीला का विवरण पढने में आनंद आया होगा और आपकी प्रतिक्रियाओं का हार्दिक स्वागत है। एक और सूचना मई सब भक्तों को देना चाहूँगा कि इस वर्ष "बिहार पंचमी" का पवन पर्व 17 दिसम्बर को वृन्दावन में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा। ठाकुर श्री बांके बिहारी जी के प्रादुर्भाव दिवस के उपलक्ष्य में स्वामी जी की विशाल सवारी निधिवन से मंदिर पधारेगी। इस बिहार पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है क्योंकि इसी तिथि को त्रेता में भगवान् राम का माँ जानकी से विवाह हुआ था। 

आप सबको बिहार पंचमी की बहुत बहुत बधाई।